पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/९६

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6 24 राम बुदबुदाए, "वही-वही-वही-वही स्वर है । सीता प्रिये ! संध्या हो रही है । पृथ्वी सुनहरी रंग गई है। उस बरगद की डालियों की जड़ें धरती को चूम रही हैं। कौन पक्षी गा रहा है ? पम्मा सरोवर · ।" सीता ने कहा, “सखी ! आर्यपुत्र पुरानी बातों के सपने देख रहे हैं।" । यही तो पंचवटी है। यहीं तो हमारी कुटिया थी। उसमें सीता रहती थी। सीते ! ओ, प्रियम्बदा सीते !" "हाय, सुप्राणेश्वर ! वह अधम दासी जीती-जागती यहीं है।" "कहां? कौन तुम ? मैं कहां ?" वासन्ती ने राम के सिर पर हाथ रखकर कहा, "महाराज ! सावधान होइए । यह देवी सीता हैं।" "देवी सीता !" 'हां, महाराज !" राम ने आंख खोतकर सीता को देखा । सीता को उस वेश में देखकर राम का मन हाहाकार कर उठा । वे बोले, “देवी ! तुम्हारा यह मलिन वेश, उलझे हुए बाल । तो तुम देवी सीता हो?" "हां, यह अभागिनी आपकी दासी सीता है।" "जनक की राजदुलारी ?" "हां, आर्यपुत्र !" "हाय, प्रिये ! मेरे रहते तुम्हारी यह दशा हो गई। अरे, देवी का यह रूप देखने से पूर्व ही मेरी आंखें फूट जाएं।" महाराज ! इस जन्म में दर्शन हो गए । जीवन सफल हो गया। अरे, वे भगवती अरुन्धती और माता कौशल्या इधर ही आ रही हैं।" "उन्हें यह अधम राम कैसे मुंह दिखलाएगा।" इसी समय वहां कौशल्या और अरुन्धती भी आ पहुंचीं। कौशल्या ने अरुन्धती से पूछा, "भगवती ! वह रामचन्द्र ही हैं न? अब तो पहचाने भी नहीं जाते । अरे, पुत्र राम !" अरुन्धती ने कहा, “महारानी ! वहां सौभाग्यवती सीता भी हैं।" "तो सचमुच पुत्र और बहू में मेल हो ही गया।" "हां, महारानी ! आओ, रामचन्द्र का संकोच दूर करें।" वे और आगे बढ़ीं। राम ने माता को देखकर कहा, “माता ! यह कुपुत्र राम आपके चरणों में अभिवादन करता है।" "रामचन्द्र ! मेरे पुत्र ! आओ। मेरी छाती को ठंडी करो। अरी, बेटी सीता ! मेरी सुलक्षणा बहू ! अरी तपस्विनी ! तू धन्य है !" "पूज्ये ! आपकी दासी सीता अभिवादन करती है।"