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द्वीप का परिदर्शन।


हटी में पहुँचा। वह स्थान हरियालियों और भाँति भाँति के पेड़-पौधों से ऐसा सुशोभित मालूम होता था जैसा कोई सुन्दर उद्यान हो। नारियल, नारङ्ग, काग़ज़ी और बीजपूरक नींबू के पेड़ इस अधिकता से उपजे थे कि एक उपवन सा प्रतीत होता था। किन्तु ये सब जङ्गली थे और फल भी उनमें कम ही थे। मैंने कुछ नींबू तोड़ लिये पानी में नीबू का रस डाल कर जो शरबत बनाया वह बड़ी अच्छी ठंडाई और बलकारक जँचा। बरसात का मौसम करीब आ पहुँचा। इसलिए अभी से बरसात के लिए खाद्य-सामग्री का सञ्चय करना आवश्यक जान जहाँ तक हो सका अंगूर, नींबू आदि फल तोड़ लिये। दूसरी बेर थैली लाकर और उन्हें उसमें भर कर घर ले आने का विचार किया। तीन दिन बाद में घर को लौट आया। अभी मैंने तम्बू को ही घर बना रक्खा था।

घर आते आते जो अंगूर खूव पके थे वे आप ही आप फट गये और उनका रस बह गया। नींबू ठीक थे। किन्तु बहुत तो ला नहीं सका था।

१६ वीं तारीख को दो छोटी थैलियाँ लेकर मैं फल बटोरने के लिए फिर बाहर हुआ। कल जिन पेड़ों में गुच्छे के गुच्छे फल लदे थे, आज उनमें अधिकांश कटे फटे और खाये हुए तथा नीचे गिरे पड़े थे। यह देख कर मैंने समझा कि किसी जङ्गली जानवर ने इन फलों की ऐसी दुर्दशा कर डाली है। किन्तु उस जन्तु का मैं ठीक ठीक पता न लग सका। जो हो, जितने फल थे वे ही मुझ अकेले के लिए काफ़ी थे। जितने मुझ से बने उतने नींबू ले लिये। किन्तु अंगूर मारे रस के फटे जा रहे थे। वे थैली में भर कर ले जाने येाग्य न थे।