जायगा। किन्तु इतने पर भी मेरी असुविधा का अन्त न था। मैं न जानता था कि किस तरह जो पीस कर उसका आटा निकाला जाता है, आटा निकलने पर किस तरह वह छाना जाता है, छान लेने पर किस तरह उसकी रोटी बनती है और किस तरह सेंकी जाती है। कैसे क्या होगा, इसकी चिन्ता छोड़ कर मैंने इस दफ़े की सारी फसल बीज के लिए रख छोड़ी और बीज बोने के समय से पहले मैं अपने खाने-पीने की सामग्री सञ्चय करने में जुट गया।
एक साधारण रोटी पकाने के लिए कितनी ही सामान्य सामान्य वस्तुओं की आवश्यकता होती है, इस पर प्रायः बहुत लोग ध्यान नहीं देते। एक तो मेरे रहने का ठिकाना नहीं, दूसरे कोई संगी साथी भी नहीं। खेती करने का कोई सामान नहीं। मेरे पास न हल है न बैल। न कुदाल है न खनती काठ का कुदाल जो बनाया था वह खराब हो गया तो भी उससे किसी किसी तरह काम चलाया। दूसरी दिक्कत यह थी कि बीज बोने के बाद हिंगाने की ज़रूरत थी। उसके लिए हेंगा (लकड़ी का भारी लम्बा तख्ता) चाहिए। मेरे पास वह नहीं था। मैं एक पेड़ की मोटी सी डाल काट कर ले आया और उसे घसीटता हुआ खेत में इधर उधर घूमा। उसे घसीट कर ले चलने से जो खेत में चिह्न पड़ गया उसी से काम चल गया। फसल उगने पर फिर उसकी हिफाज़त के लिए बहुत कुछ करना पड़ा। बाड़ लगाना, पकने पर काटना, अनाज अलग करना आदि कितने ही काम करने पड़े। इसके बाद आटा पीसने के लिए जाँता, चालने के लिए चलनी आदि की आवश्यकता हुई। इसके बाद आटा माँड़