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पृष्ठ:राबिन्सन-क्रूसो.djvu/१६५

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राबिन्सन क्रूसो।


चित्त में बनी रहती थी। मैं कभी कभी स्वप्न भी देखा करता था कि उन राक्षसों को मार रहा हूँ।

इस काम पर मैं यहाँ तक आरूढ़ हुआ कि अपने को अच्छी तरह छिपाने योग्य एक गुप्त स्थान की खोज में घूमने लगा। मैंने पहाड़ की तराई में एक ऐसो जगह ढूँढ़ निकाली जहाँ छिप कर मैं राक्षसों की नौका देख सकूँ और जङ्गल में कई एक ऐसी जगह ठीक कर रक्खी जहाँ पेड़ की आड़ में छिप कर उन पर एकाएक गोली बरसा सकूँ।

इस विचार को पक्का करके मैं रोज़ सबेरे दो तीन बन्दूकों में और पिस्तौल में गोली भर कर उस पहाड़ के ऊपर जाता और देखता कि उन राक्षसों की नौका आती है या नहीं। वह जगह मेरे किले से तीन मील पर थी। सिर्फ इतनी ही दूर मैं प्रतिदिन जाता-भाता था। पर मैंने किसी दिन किसी को देखा नहीं। दूरबीन लगा कर भी सारे समुद्र में देखता भालता, पर कहीं कोई नाव का चिह्नमात्र भी दिखाई नहीं देता था।

जब तक उत्साह था तब तक मुझे अकारण बीस-बाईस मनुष्यों को मारने की इच्छा अत्यन्त प्रबल थी। किन्तु उन लोगों को कहीं न देख कर जब मेरा उत्साह घट गया-जब तमोगुण की मात्रा कुछ कम हुई-तब शान्त चित्त से सोच कर मैंने देखा कि उन बेचारों का दोष क्या था जो मैं इतने दिनों से उनको मारने पर उद्यत था। मनुष्य का मांस खाना उनके देश का रिवाज है। उन लोगों ने कभी अच्छी शिक्षा नहीं पाई है, केवल अपनी प्रकृति की उत्तेजना से जो उनके जी में आता है, करते हैं। उन लोगों के गुण-दोष की विवेचना करने का मुझे क्या अधिकार है? उन लोगों ने