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पृष्ठ:राबिन्सन-क्रूसो.djvu/१६७

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राबिन्सन क्रूसो ।

मैं अपनी डोंगी को खींच कर द्वीप के पूरब और एक समुद्र-संलग्न बृहत् जलाशय में ले गया और नाव में जो कुछ चीजें थीं उनको उस पर से उतार लाया। अब मैं पहले की तरह बाहर घूमने न जाता था। कौन जाने, एक बार सिर्फ पैर का चिह्न देखा है, अब की बार यदि उन पदचिह्न वालों का ही साक्षात् दर्शन हो। उनके सामने पड़ कर उनके हाथ से उद्धार पाना कठिन होगा। इस समय मेरे मन की वह तमोगुणप्रधान समुद्भाविनी शक्ति एकदम नष्ट हो गई थी। यहाँ तक कि एक लोहे की छड़ गाड़ने या लकड़ी काटने का भी साहस न होता था। बन्दूक की आवाज़ करना तो दूर की बात थी।

सब से अधिक डर लगता था मुझे आग जलाते, कारण यह कि झूठे बहुत दूर से देख पड़ता है। यदि उसे कोई देख ले में इसलिए अब से मैं आग का काम अपने कुञ्जभवन में करने लगा।

आग का जलाना कठिन हो गया, परन्तु बिना आग के काम भी तो नहीं चलता था। इसलिए कुछ कोयले बना कर रखना उचित समझा। मैंने अपने देश में देखा था कि लकड़ी में आग लगा कर ऊपर से मिट्टी और घास से दबा देते थे, तब कुछ देर में लकड़ी जल कर कोयला हो जाती थी। मैं भी इस प्रकार कोयला बनाने के लिए एक दिन अपने कुञ्जभवन में लकड़ियाँ काट रहा था। लकड़ी काटते काटते मैंने एक झुरमुट के पास, पहाड़ के नीचे, एक गढ़ा देखा। मैं पेड़ से उतरा और कुतूहलाक्रान्त होकर उसे देखने गया। बड़े कष्ट से झुरमुट के पत्तों को हटा कर मैंने के के सामने गढ़ मुँह के सामने जाकर देखा, जगह मेरे पसन्द लायक थी। उसके भीतर मैं