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द्वीप के पास जहाज़ का डूबना।


किनारे उतर कर ले गया और देखने लगा कि कौन कौन चीज़े हैं।

सन्दूक़ खोला। उसमें बहुत सी ज़रूरी चीजें मिलीं। सन्दूक में मुख्य चीजें थीं श्राटा, बोतल में भरी कुछ मिठाई, अच्छी अच्छी कमीज़, डेढ़ दर्जन रूमाल और छींट का गुलूबन्द। इस उपण-प्रधान देश में हाथ मुँह पोंछने के लिए रूमाल की बड़ी आवश्यकता थी । दूसरे सन्दूक में रुपये, सोने का पत्र और बारूद थी।

यद्यपि ये चीज़ें प्रयोजनीय थीं परन्तु ऐसी न थीं जिससे मेरा विशेष उपकार होता। रुपया बहुत मिला ही तो किस काम का, वह तो अभी मेरे पैर की धूल के बराबर है। उसकी न यहाँ कुछ उपयोगिता है और न कुछ मोल है। दो तीन जोड़े जूतो के बदले में ये सब रुपये खुशी से दे सकता था। बहुत दिनों से जूते न होने से कष्ट हो रहा था। जहाज़ के रसोईघर में जो दो आदमी लिपटे हुए मरे पड़े थे, उनके पैरों से मैं दो जोड़े जूते खोल कर लाया था और दो जोड़े सन्दूक में मिल गये। किन्तु ये पहनने में उतने सुखप्रद न थे।

इस जहाज़ में बहुत धन-रत्न थे। किन्तु जिस भाग में वे सब थे वह जल में डूब गया था; नहीं तो मैं कई नाव सोने चाँदी और रुपयों से अपनी गुफा को भर देता। इस अवस्था में भी मेरे पास धन की कमी न थी। यथेष्ट धन था, तथापि उस धन से मैं धनवान थोड़े ही था।

मैं उन चीज़ों को ढोकर ले आया और यथास्थान रख दिया। फिर नाव को अड्डे में ले जाकर बाँध आया। इसके बाद मैं घर गया। वहाँ सब चीज़ ज्यों की त्यो रक्खी थीं।

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