सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:राबिन्सन-क्रूसो.djvu/१८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६४
राबिन्सन क्रूसो।

जब मैं जाग कर उठा तब स्वप्न की बात सोच कर मेरी तबीयत बहुत ख़राब हो गई। जो हो, इस प्रकार एक भृत्य मिल जाने की चिन्ता ने मेरे मन में घर कर लिया। मैंने सोचा, यदि एक असभ्य भृत्य-रूप में मिल जाय तो उसकी सहायता से मैं महादेश को जा सकता हूँ और उन राक्षसों के साथ सद्भाव रखने से मेरा उद्धार भी हो सकता है।

इस स्वप्न ने मेरे मन पर ऐसा प्रभाव डाला कि मैं प्रति दिन समुद्र की ओर देख देख कर डोगी पाने की प्रतीक्षा करने लगा। में व्यर्थ की प्रतीक्षा में एक तरह थक सा गया। इसी तरह डेढ़ वर्ष बीत गया।

डेढ़ वर्ष बाद एक दिन मैं सबेरे घर के बाहर आकर अवाक हो गया। द्वीप के जिस भाग में मेरा घर था उसी ओर देखा कि समुद्र के किनारे पाँच डोंगियाँ बँधी हैं। उस पर एक भी सवार नहीं, सभी उतर कर कहीं चले गये हैं। अरे बाप! एक दम पाँच पाँच डोंगियाँ! न मालूम, इस पर कितने लोग आये होंगे? मुझे बाहर ठहरने का साहस न हुआ। मैं किले के भीतर आकर उनका हाल जानने के लिए छटपटाने लगा। उन लोगों के ऊपर आक्रमण करने का सभी सामान ठीक कर मैं अवसर की अपेक्षा करने लगा। अपेक्षा करते करते मैं अकुला उठा। तब बन्दूको को ज़मीन में रख, कर सीढ़ी लगा पहाड़ की चोटी पर चढ़ गया मैंने दूरबीन लगा कर देखा, कि उन लोगों ने अग्निकुण्ड प्रज्वलित किया है और उसके चारों ओर घूम घूम कर वे विचित्र अङ्ग-भङ्गी के साथ नाच रहे हैं।

मैं यह देख ही रहा था कि इतने में वे लोग नाव के पास से दो हतभागों को खींच कर ले गये। उन दोनों को मार कर