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भृत्य-प्राप्ति।


वे राक्षस अभी खा डालेंगे। एक को लाठी मार कर उसी समय गिरा दिया और उसके अङ्ग-प्रत्यङ्गी को काट कर टुकड़े टुकड़े कर डाले। दूसरा अदमी, अपनी मृत्यु की अपेक्षा कर के, आँखों के सामने अपने साथी की दुर्दशा देखने लगा। हा! कैसा हृदयविदारक भीषण दृश्य था!

सब अपने अपने काम में लगे थे, यह सुयोग पा कर वह, अपने को बन्धन-रहति देख कर, तीर की तरह मेरे घर की ओर वहाँ से निकल भागा। उसको अपने घर की ओर आते देख मैं बहुत हो डरा। शायद उसको पकड़ने के लिए उसके पीछे वे लोग भी दौड़े आवें। मैं हृदय को मज़बूत करके, साहस-पूर्वक देखने लगा कि क्या होता है, देखा, सिर्फ तीन आदमी उसके पीछे पीछे दौड़े आ रहे हैं। वह भागने वाला इस तरह बेतहाशा दौड़ा पा रहा है कि उसका पीछा करने वाले बहुत पीछे पड़ गये हैं।

मेरे किले की ओर आने में, उन लोगों के मार्ग में, समुद्र की वही खाड़ी पड़ती थी। समय ज्वार का था। किन्तु वह भागने वाला वहाँ पा कर ज़रा भी न रुका। उसने उस अगाध खाड़ी की कुछ परवा न की। वह एकाएक उसमें धँस पड़ा और तीस बत्तीस बार हाथ चलाने में ही तैर कर पार हो गया। स्थल में आकर उसने फिर दौड़ लगाई। उसका पीछा करनेवाले भी खाड़ी के पास आये। दो आदमी पानी में घुस कर के तैरने लगे। किन्तु तीसरा आदमी शायद तैरना नहीं जानता था। वह कुछ देर वहीं खड़ा हो कर देखता रहा, इसके बाद लौट कर चला गया। उसने लौट कर मेरे और अपने हक़ में भी अच्छा ही किया। उसके आने से मेरे दुश्मनों की संख्या में एक की और वृद्धि होती। यह मेरे लिए