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क्रूसो के घर में नवीन अभ्यागत।


इतना डरते क्यों हो? मैं उन सबों के साथ युद्ध करूँगा। क्या तुम मेरा साथ न दे सकोगे?

फ़्राइडे-हाँ, मैं बराबर साथ दूँगा और उन लोगों के साथ युद्ध करूँगा। परन्तु वे लोग गिनती में अधिक है।

मैं-इससे क्या? जो न भी मरेगा वह भय से अधमरा हो जायगा। मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा, तुम मेरी रक्षा करोगे न?

फ़्राइडे-आपके लिए मैं अपने प्राण तक देने को तैयार हूँ। केवल आपकी आज्ञा चाहिए।

तब मैंने उससे बन्दूक़ और पिस्तौल लाने को कहा। उनमें जो जो शस्त्र अच्छे थे उनमें गोली और छर्रे भरे। अपनी कमर में नङ्गी तलवार बाँधी और फ़्राइडे की कमर में खञ्जर लटका दिया। जब हम दोनों हरवे-हथियार से लैस हो कर युद्ध करने को तैयार हुए तब मैंने पहाड़ के ऊपर चढ़ कर दूरबीन के द्वारा देखा कि वे लोग गिनती में इक्कीस थे, तीन आदमी बन्दी थे और तीन ही डोंगियाँ थीं। वे लोग कैदियों को खाने के आनन्द में मग्न हैं। हा! कैसा जघन्य आनन्द है! कैसी राक्षसी वृत्ति है! इस दफ़े वे लोग खाड़ी के पास एक दम जङ्गल के नज़दीक उतरे हैं।

मैं पहाड़ से उतर आया। कुछ अस्त्रशस्त्र फ़्राइडे को दिये, और कुछ मैंने अपने साथ ले लिये। मैं जैसा कहूँ वैसाही करना-यह उपदेश फ़्राइडे को देकर उससे चुपचाप साथ आने को कहा। इस वीरवेष में जाते जाते मेरे मन में फिर पुराना धर्मभाव जाग्रत हो उठा। मेरे हृदय में यह विवेक-बाणी बार बार गूँजने लगी कि उन लोगों ने मेरा क्या बिगाड़ा है! हम लोगों की आँखों में जो बड़ा ही नीच