सब काम अच्छी तरह कर दिया। युद्ध का या असभ्यों का एक भी चिह्न न रहने दिया।
अब मेरे टापू में प्रजा की संख्या तीन हुई। पहले था मैं राजा, अब मानो हुआ सम्राट! यह भावना मेरे मन में बड़ा ही हर्ष उपजाती थी। मैं ही समग्र द्वीप का अधीश्वर हूँ। मेरी प्रजा का जीवन-मरण मेरे ही हाथ में है। मैंने उनके जीवन की रक्षा की है, वे मेरी आज्ञा से प्राण देने को प्रस्तुत हैं। किन्तु प्रजा के तीनों आदमियोंका धर्म और मत तीन तरह का था। फ़्राइडे प्रोटेस्टेन्ट (protestant) किरिस्तान था, उसका पिता नास्तिक था, और स्पेनियर्ड कैथलिक किरिस्तान था। किन्तु मैं इससे क्षुण्ण न था। मेरे राज्य में मज़हब की स्वाधीनता है। इसमें मैं अपना गौरव समझता था।
मैं फ़्राइडे को मध्यस्थ कर के अपने नवीन अतिथियों के साथ वार्तालाप करने में प्रवृत्त हुआ। मैंने फ़्राइडे के बाप से पूछा-"तुम क्या सोचते हो, इन चार भगोड़ों के मुँह से खबर पाकर क्या असभ्य गण दल बाँध कर यहाँ आवेंगे और मुझ पर आक्रमण करेंगे?" उसने कहा, "मेरा ख़याल तो ऐसा नहीं है। जैसी तेज़ हवा बह रही थी उससे यही मालूम होता है कि नाव डूब जाने से वे लोग मर गये होंगे या दूसरे देश में पहुँच गये होंगे। दूसरे देश के लोग उन्हें जीते जी कब जाने देंगे। कदाचित् वे बच कर अपने देश को लौट भी गये होंगे तो भी अब इस देश में न आवेंगे क्योंकि वे आपस में कह रहे थे कि 'दो स्वर्गीय देवों ने आकर वज्राघात से उन सब को मार डाला है,।' उन असभ्यों ने मुझको और फ़्राइडे को देव समझ रक्खा और बन्दूक़ की आवाज़ को वज्रनाद मान लिया था। वे असभ्य लोग आवे