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अतिथि-सेवा।


चाहे न आवें पर हम लोग सर्वदा चौकन्ने रहने लगे। अब हम लोग चार आदमी हुए। सौ आदमियों का सामना कर सकेंगे-ऐसा जी में भरोसा हुआ।

अब फिर छुटकारे की चिन्ता होने लगी। फ़्राइडे के पिता ने भी मुझको भरोसा दिया कि उनके देश में जाने पर सब लोग मेरे साथ सद्व्यवहार करेंगे। स्पेनियर्ड ने भी कहा कि उस देश में जो और पोर्चुगीज़ और स्पेनियर्ड लोग हैं उन लोगों के साथ कोई बुरे तौर से पेश नहीं आता। सभी लोग उनका सम्मान करते हैं। वहाँ जाने पर वे लोग भी मेरा सम्मान करेंगे। मैंने कहा, "यदि मैं वहाँ न जाऊँ और उन यूरोपियनों के यहीं बुला लूँ तो हम लोग मिल कर एक बहुत बड़ा जहाज़ बना सकेंगे। किन्तु सच तो यह है कि मनुष्य एक विचित्र जीव होता है। जब तक उन लोगों को अपना मतलब निकालना होगा तब तक तो वे मेरा उपकार मानेंगे पीछे से चाहे मेरा ही सर्वनाश करेंगे। जानते तो हो, स्पेन और इंगलैन्ड की चिरशत्रुता है"। स्पेनियर्ड ने इस बात का प्रतिवाद कर के कहा-यह बात अब नहीं है, उसका आप भय न करे। वे लोग वहाँ बेकार पड़े हैं, इससे किसी तरह का साहाय्य पाने ही से वे कृतार्थ होंगे। आप कहें तो मैं वहाँ जाकर और उन लोगों का अभिप्राय जान कर फिर यहाँ आ सकता हूँ। उन लोगों के पास अस्त्र-शस्त्र, कपड़े-लत्ते आदि कुछ नहीं हैं। असभ्यों की दया के भरोसे बैठे हैं। वे लोग आपसे सहायता पाने पर आपकी आज्ञा के अनुसार चलेंगे, क्योंकि वे सभी भद्र और सहृदय हैं। आपके स्वामी समझ कर चिरकाल तक आपकी सेवा करेंगे और आपही की आज्ञा पर अपने जीवन-मरण को निर्भर करेंगे।