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पृष्ठ:राबिन्सन-क्रूसो.djvu/२२५

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राबिन्सन क्रूसो।

वह–हम लोगों का मुख़्तसर हाल यही है कि मैं जहाज़ का कप्तान हूँ। नाविक गण विद्रोही होकर मुझको मारने पर उद्यत हुए थे। बहुत कहने-सुनने और विनती करने पर उन लोगों ने इस निर्जन द्वीप में हम लोगों को छोड़कर चले जाने का विचार किया है। इनमें एक मेरा मेट है और एक नोकारोही है।

मैं-उन अत्याचारियों के पास बन्दूक़ें हैं?

कप्तान-हाँ, दो बन्दूक़ें हैं। वे जहाज़ में रक्खी हैं।

मैं–तो आप लेाग निश्चिन्त रहिए। मैं अभी उनका नाश करूँगा या हो सकेगा तो उन्हें बन्दी करूँगा।

कप्तान–"उनमें दो मनुष्य उस मण्डली के मुखिया हैं, उन को पकड़ लेने से और लोग आप ही वशीभूत होंगे।" वे लोग कहीं हम को देख न लें, इसलिए कप्तान आदि तीनों को साथ ले मैं अपने किले के सामने वाले उपवन में जा छिपा। तब मैंने फिर कप्तान से कहा-देखिए महाशय, यदि आप लोग दो शर्ते मंजूर करें तो मैं आप लोगों के बचाने का उपाय कर सकता हूँ।

कप्तान ने मेरा मतलब समझ कर कहा–यदि आप जहाज़ पर क़ब्ज़ा करलें तो वह आप अपना ही समझिए। यदि यह नहीं तो हम लोगों को आप अपनी आज्ञा के वशवर्ती समझें। अन्य दो व्यक्तियों ने भी कप्तान की इस बात पर ज़ोर दिया।

मैंने कहा-मेरी दो शर्तें यही हैं कि जब तक आप लोग मेरे इस टापू में रहें, मेरे अधीन होकर रहें और मेरी आज्ञा के अनुसार चलें। कभी विरुद्धाचारण न करें। कोई काम आ पड़ने पर मैं अस्त्र दूँ तो काम हो जाने पर फिर वह