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क्रूसो के उद्धार की पूर्व सूचना


आत्मसमर्पण करने को कहा। उन लोगों ने भी झट अस्त्र त्याग कर के प्राण-भिक्षा चाही। कप्तान ने कहा-"तुम लोगों का प्राण लेना या न लेना हमारे सेना गति की इच्छा के अधीन है।" हम लोगों ने उनके हाथ-पैर बाँध कर अपने क़ब्ज़े में कर लिया।

अब हम लोगों को नाव की मरम्मत करके जहाज़ पर आक्रमण करना बाक़ी रहा। मेरे मन में आशा होने लगी कि अब मेरे उद्धार का समय समीप है। मैंने दूर से कप्तान को पुकारा। एक आदमी ने जाकर कहा, "कप्तान साहब, सर्कार आप को बुलाते हैं।" कप्तान ने झट उत्तर दिया, "तुम हुज़ूर से जा का कह दो कि वह अभी हाज़िर होता है।" यह सुनकर सभी नाविक चुप हो रहे; किसी को ज़ोर से बोलने का साहस नहीं हुआ। उन लोगों ने समझा कि इस द्वीप के स्वामी अपना दलबल ले कर समीप ही कहीं ठहरे हैं। कप्तान को मेरे पास आने का उपक्रम करते देख कर उन लोगों ने कहा-"हम लोगों से बड़ी ग़लती हुई, अब ऐसा काम कभी न करेंगे। आप अपने सेनापति से हम लोगों पर दया करने को कहिये।" कप्तान ने कहा-'मेरे सेनापति बड़े दयालु हैं, इसी से उन्होंने अब तक तुम लोगों को पेड़ से लटका कर फाँसी नहीं दी। वे तुम लोगों को किसी प्रकार का क्लश न देंगे। तुम लोगों को इँगलैंड ले जायँगे, वहाँ क़ानून के अनुसार जो उचित दण्ड होगा दिया जायगा।" वे लोग जानते थे कि आईन के अनुसार इस अपराध का दण्ड फाँसी है। इसलिए उन लोगों ने बिनती कर के कहा-"तो हम लोगों को इसी द्वीप में छोड़ दीजिए, इँगलैंड न ले जाइए।" कप्तान ने कहा-ये बातें सेनापति की इच्छा पर निर्भर हैं।