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क्रूसो का स्वदेश-प्रत्यागमन और धनलाभ।


अन्त में उनके शपथ करने पर कप्तान ने उन दोनों को जहाज़ पर चढ़ा लिया। जहाज़ पर चढ़ा कर उन्हें अच्छी तरह डाँटडपट बता दी। तब से ये दोनों बड़ी भलमनसाहत के साथ रहने लगे।

मैं अपनी चमड़े की टोपी, छत्ता, और तोता अपने साथ जहाज़ में लाया था। मेरे पास जो कुछ रुपये थे उनका लाना भी मैं न भूला। इतने दिन यों ही बेकार पड़े रहने के कारण रुपयों में मोर्चा लग गया था। देखने से कोई यह न कहता कि यह चाँदी का रुपया है । मैंने उनको अच्छी तरह मल कर झलका लिया।

इस प्रकार अनेक सुख-दुःख भोग कर १६८६ ईसवी की १९वीं दिसम्बर को मैंने द्वीप छोड़ा। ठीक इसी तारीख़ को मैं शैली के मूर का दासत्व छोड़ कर बजरे के सहारे भागा था। इस द्वीप में अट्ठाईस वर्ष दो महीने उन्नीस दिन एकान्तवास करने पर आज मेरा उद्धार हुआ। आज मैं अपने देश को जा रहा हूँ, आज मेरे आनन्द का वारापार नहीं। धन्य जगदीश्वर! तुम्हारी कृपा से आज इस आशातीत सुख का भागी बना हूँ।



क्रूसो का स्वदेश-प्रत्यागमन और धनलाभ

मुद्दत के बाद १६८७ ईसवी की ग्यारहवीं जून को मैं इँगलैंड लौट आया। आज पैंतीस वर्ष के बाद मुझे स्वदेशदर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

देश लौट कर देखा, मैं यहाँ सम्पूर्ण रूप से अपरिचित हो गया हूँ। मेरे उपकारी मित्र कप्तान की स्त्री, जिसके पास मेरा