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पृष्ठ:राबिन्सन-क्रूसो.djvu/२४५

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राबिन्सन क्रूसो।


कुछ रुपया जमा था वह, अब तक जीती थी, किन्तु विधवा हो जाने के कारण वह बड़ी दरिद्रा हो गई थी। मैंने अपना धन उससे नहीं माँगा बल्कि उस समय मेरे पास जो कुछ पूँजी थी उसमें से भी उसे कुछ देकर उसकी सहायता की। मैं कप्तान का उपकार और सदय व्यवहार न कभी भूला और न कभी भूलूँगा। मैं लन्दन से यार्क शहर को गया। वहाँ जाकर क्या देखा-मेरे पिता, माता, और भाई सब मर गये, केवल मेरी दो बहने और दो भतीजे बच रहे थे। घरवालों ने समझ लिया कि मैं विदेश में जाकर मर गया, इस से मेरे पिता मुझको पैतृक धन का कुछ भी अंश न दे गये। पैतृक धन से हाथ धोकर मुझे अब स्वावलम्बन से जीवन-निर्वाह करना होगा। परन्तु मेरे पास जो कुछ पूँजी थी उससे आश्रम का ख़र्च चलना कठिन था।

जहाँ से कुछ मिलने की आशा न थी वहीं से मुझे कुछ साहाय्य मिला। विद्रोही नाविकगण जिस कप्तान को मारने के लिए मेरे टापू में ले गये थे उसने देश में आकर मेरी बात लोगों से कही, और मैंने जिस युक्ति से विद्रोहियों के हाथ से जहाज़ ले लिया था वह हाल भी उसने जहाज़ के मालिक से कहा। मैंने जिन महाजनों के जहाज़ और माल की रक्षा की थी उन्होंने मिलकर मुझे लगभग तीन हज़ार रुपया पुरस्कार दिया। यह रुपया भी मुझे निश्चिन्त होकर बैठने और अन्य कोई व्यवसाय न करके जीवन-निर्वाह के लिए यथेष्ट न था। इसलिए मैंने सोचा कि लिसबन जाकर ब्रेज़िल में जो मेरी खेती आदि हाती थी उसकी हालत का पता लगाऊँ। मैं अगले साल के एप्रिल महीने में जहाज़ पर सवार होकर लिसबन जा