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दूसरी बार की विदेश-यात्रा।


पुनर्जीवन मान कर मारे ख़ुशी के विदेह बन गये थे। किसी को अपने-पराये की सुध न थी, सभी आनन्द में उन्मत्त थे। कोई रोता था, कोई हँसता था, कोई नाचता था, कोई गाता था, कोई पागल की भाँति अंट संट बकता था, कोई जहाज़ में इधर से उधर दौड़ता था, कोई चित्रवत् खड़ा था, कोई चुपचाप मौन साधे बैठा था, कोई वमन करता था, कोई बेहोश पड़ा था और कोई कृतज्ञता-पूर्वक भगवान् को धन्यवाद दे रहा था।

मैंने इसके पहले उमङ्ग की ऐसी विचित्र अवस्था कभी न देखी थी। फ़्राइडे ने जब अपने पिता को देखा था तब उसके उस समय के आनन्दोच्छ्वास, और द्वीप में निर्वासित कप्तान तथा उसके दो संगियों को जब मैंने आश्वासन दिया था उस समय के उनके विस्मय और अनिर्वचनीय आनन्द का कुछ कुछ भाव इन लोगों के आनन्दोद्रेक से मिलता था।

इन आगन्तुकों के आनन्दोच्छ्वास के प्रकाश के जितने भाव मैं ऊपर दिखा आया हूँ वे एक एक व्यक्ति को एक ही प्रकार से होकर निवृत्त हो गये हों यह नहीं, बल्कि एक ही व्यक्ति पर्यायक्रम से सभी प्रकारों के उद्धत भाव और आवेग प्रकट कर रहा था। कुछ देर पहले जो चुपचाप मौन साधे थे वे कुछ ही देर बाद पागल की भाँति नाचने, गाने और ख़ूब ज़ोर से चिल्लाने लग जाते थे। तुरन्त ही उनका वह भाव बदल जाता था और वे रोने लग जाते थे। रोना समाप्त होते न होते वे कै करने लग जाते थे। कै करते ही करते उन्हें मूर्च्छा आ जोती थी। यह दशा सब की थी। यदि हम लोग झटपट उनका इलाज न करते तो उनकी मृत्यु होना भी असंभव न