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राबिन्सन क्रूसो।

उन लोगों के चले जाने पर द्वीप-वासियों ने एक बार वहाँ जाकर देख पाना चाहा कि असभ्यगण क्या करने आये थे। सभी लोगों ने वहाँ जाकर देखा, जहाँ वे उतरे थे। तीन असभ्य धरती पर लेटे घोर निद्रा में अचेत पड़े थे। शायद ये लोग बेअन्दाज़ नर-मांस खाकर, अफर कर, सो रहे थे। निद्रित होने के कारण इन्हें मालूम ही नहीं हुआ कि साथी लोग कब चले गये। संभव है, इनकी नींद न टूटी हो और वे लोग बिना जगाये चल दिये हों अथवा ये लोग जंगल में घूमने गये होंगे। जब इन लोगों ने लौट कर देखा होगा कि साथी चले गये तब निश्चिन्त होकर सो रहे होंगे। जो हो, उनको सोते देख सभी भय और आश्चर्य से ठिठक रहे। सभी ने सर्दार से पूछा कि इन लोगों के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिए। सर्दार की समझ में भी कुछ न आता था जो अपनी राय जाहिर करते। द्वीप-वासियों के पास बहुत से दास थे ही, वे और लेकर करेंगे ही क्या, या उन्हें खाने ही को क्या देंगे? तब इन असभ्यों को मार डालना चाहिए। किन्तु इन लोगों का अपराध ही क्या है? निर्दोष बेचारों को प्राणदण्ड देना भी तो ठीक नहीं। निरपराधियों को मारने में राक्षसों का भी हाथ सहसा नहीं उठता। बड़े बड़े निर्दय और नृशंस भी ऐसे काम में सङ्कुचित हो उठते हैं। वे असभ्य जागने पर चले जाते तब तो सब बखेड़ा ही मिट जाता। किन्तु बिना नाव के वे लोग जायँगे कैसे? जागने पर वे लोग द्वीप भ्रमण में प्रवृत्त होंगे और द्वीपवासियों का पता पाकर अनर्थ का बीज बोयेंगे। अन्ततोगत्वा यही स्थिर हुआ कि उन लोगों को क़ैद करके रखना चाहिए। वे जगा कर कैद कर लिये गये। जब उनके हाथों