सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:राबिन्सन-क्रूसो.djvu/३१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२८७
द्वीप में असभ्यों का उपद्रव।


किन्तु अन्य दो अँगरेज़-नाविकों का घर-बार खेती-बाड़ी सभी मानो खिल खिला कर हँस रही थी। वे सभी काम आलस्य छोड़ कर करते थे, इसीसे उनके एक भी काम में व्यतिक्रम न था। जहाँ श्रम है वहीं लक्ष्मी का वास है। जहाँ तत्परता है वहीं उन्नति है। जहाँ मनोयोग है वहीं सौन्दर्य है। जहाँ आलस्य है वहाँ दरिद्र का निवास है। आलसी मनुष्य के सभी काम बेतरतीब होते हैं। आलसियों के भाग्य में सुख कहाँ? जो श्रम-विमुख हैं उन्हें सभी वस्तुओं का अभाव रहता है। उन्हें अभाव नहीं रहता है केवल दुःख और दारिद्रय का। परिश्रमी को किसी बात की तकलीफ़ नहीं रहती। उसके चारों ओर आनन्द छाया रहता है। दरिद्रता पास फटकने नहीं पाती। उन तीनों आलसी अँगरेज़ों की स्त्रियाँ बड़ी सुघड़ थीं इसीसे उन लोगों का किसी तरह समय कट जाता था, नहीं तो वे अपनी मक्खियाँ भी न हाँक सकते।



द्वीप में असभ्यों का उपद्रव

सभी लोग सुख-स्वच्छन्द से अपने अपने घर का काम धन्धा कर रहे थे। एक दिन सबेरे असभ्यों से भरी हुई पाँच छः नावें इस द्वीप में आ पहुँचीं। मालूम होता है, वे लोग नर-मांस खाने ही के लिए आये होंगे। द्वीप-वासी सभी लोग इस बात को अच्छी तरह समझ गये थे कि उन लोगों की दृष्टि से बच कर रहने में विपत्ति की कोई सम्भावना नहीं है। इसलिए सभी लोग छिपे रहे। असभ्य लोग अपना काम निकाल कर चले गये।