आते देख लिया। समुद्र-तट से कुञ्जभवन भी एक मील से कम न था। इसलिए अँगरेज़ों को सावधान होने का थोड़ा सा समय मिल गया। किन्तु द्वीपनिवासी समस्त व्यक्तियों को यह ख़बर देने का उन्हें अवसर न मिला। सारे द्वीपनिवासी एक जगह आ कर खड़े हो जाते तो उतना भय न था। किन्तु पचास-साठ योद्धाओं का सामना करना दो व्यक्तियों के लिए यथार्थ में कठिन काम था।
दोनों अँगरेज़ उन असभ्यों की चाल-ढाल देख कर ही समझ गये कि वे लोग ख़बर पा कर पा रहे हैं। इसलिए उन्होंने फ़रार-असामी के दोनों साथियों को फ़ौरन बाँध लिया और दो विश्वास-पात्र असभ्य-नौकरों के साथ उन को और अपनी स्त्रियों को कृत्रिम गुफा के भीतर भेज दिया। उन्होंने नौकरों और स्त्रियों से घर की आवश्यक चीज़ उठवा कर प्रस्थान किया। इसके बाद उन्होंने पालतू बकरों को, स्थान का फाटक खोल कर, जङ्गल में इसलिए भगा दिया कि असभ्यगण उन बकरों को जङ्गली समझ कर छोड़ देंगे। इन कामों का झटपट प्रबन्ध कर के उन्होंने एक असभ्य नौकर के द्वारा स्पेनियडौँ तथा उन तीनों अँगरेज़ों को ख़बर भेज दी। फिर आप दोनों आदमी बन्दूक़ और गोली-बारूद लेकर जङ्गल में जा छिपे, और उन असभ्यों पर तेज़ निगाह डाले रहे।
वे दोनों उस गुप्त स्थान से छिप कर देखने लगे। इधर झुंड बाँध बाँध कर असभ्यगण कुञ्जभवन में आकर एकत्र होने लगे। कुञ्जभवन में आते ही उन लोगों ने घर-द्वार, खेत-खलिहान में आग लगा दी। सभी एक साथ जल उठे। बड़े कष्ट से बनाये हुए घर-द्वार को अपनी आँखों के सामने जलते देख