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द्वीप में असभ्यों का उपद्रव।


निशान नहीं वहाँ अकस्मात् ऐसी दुर्घटना दैवी नहीं तो क्या है?

ऐसे मूर्ख-जो विपत्ति के मुख में पहुँच कर भी निरुद्विग्न भाव से खड़े हैं, इन असभ्यों को मारने में अँगरेज़ों का मन व्यथित होता था, किन्तु आत्म-रक्षा के लिए क्या करते? उन्होंने फिर गोली चलाई। चार आदमी घायल हो कर गिर पड़े। पाँचवें व्यक्ति को कुछ चोट न लगने पर भी वह केवल डर से ही मृतप्राय हो गिर पड़ा। अँगरेज़ों ने सबको गिरते देख समझा कि सभी मर गये।

सभी मर चुके, इसी विश्वास पर दोनों अँगरेज अपनी बन्दूक़ों को बिना भरे ही साहस कर के अपने गुप्त स्थान से निकल कर वहाँ गये। खाली बन्दूक़ लेकर बाहर निकलना भारी मूर्खता हुई थी, क्योंकि जब वे उन असभ्यों के पास पहुँचे तब देखा कि तीन-चार आदमी जीवित हैं। उनमें दो व्यक्तियों को बहुत कम चोट लगी थी और एक तो गोली से बेलाग बचा हुआ था। उसे कुछ भी चोट न लगी थी। यह देख कर अँगरेज़ बन्दूक के कुन्दे से काम लेने लगे। पहले उस विश्वासघाती भगोड़े का काम तमाम किया। फिर अन्य दो व्यक्तियों को संसार-यातना से छुड़ा दिया। यह देख कर, जिसे कुछ आघात न लगा था वह उन अँगरेज़ों के सामने हाथ जोड़ घुटने टेक कर दया की प्रार्थना करने लगा। उसने गिड़गिड़ा कर बड़ी दीनता दिखाई, पर उसका एक अक्षर भी उन दोनों की समझ में न आया। तब उन अँगरेज़ों ने उस असभ्य के हाथ-पैर रस्सी से बाँध कर एक पेड़ के नीचे छोड़ दिया। इसके बाद वे अग्रगामी दो असभ्यों की खोज में चले।