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उपनिवेश में समाज और धर्म-संस्थापन।


वे लोग निर्द्वन्द्व होकर घूमते-फिरते हैं और अपनी खेती-बाड़ी करते हैं। अब वे लोग बड़े सीधे सादे हो गये हैं और हम लोगों की आज्ञा के अनुसार काम करते हैं। वे लोग अब वृथा समय नष्ट न कर भाँति भाँति के टोकरे, डलियाँ, चलनी, कुरसी, टेबल, खाट, आलमारी, बक्स, आदि सुन्दर सुन्दर काम की चीज़े तैयार करके सबका अभाव दूर करते हैं। वे लोग अब अच्छे शिष्ट और सभ्य बन गये हैं।



उपनिवेश में समाज और धर्म-संस्थापन

इन अनेक घटनाओं के बाद इस टापू में मेरा आकस्मिक आगमन मेरे उपनिवेश-वासियों के लिए ईश्वर-प्रेरित आशीर्वाद ही की तरह सुखद हुआ था। मैंने इस टापू में आकर उन लोगों के सभी प्रकार के प्रभावों को दूर कर दिया। वे लोग मुझसे छुरी, कैची, कुदाल, खनती, और कुल्हाड़ी आदि उपयोगी औज़ार पाकर अपने अपने घर बनाने लग गये। विल एटकिंस पहले जैसा आलसी था वैसा ही अब ब्याह करने पर परिश्रमी हुआ। उसने अत्यन्त सुन्दर सुदृढ़ घर बनाया। उसमें चटाइयाँ बुन कर लगाईं। घर के चारों ओर खूब गोल घेरा बना दिया। उसके बीच में उसका घर अष्टदल कमल की भाँति शोभायमान हो रहा था। उसके प्रत्येक कोने में उसने खुब मज़बूत खम्भे की टेक लगा रक्खी थी। उसने अपनी ही बुद्धि से काठ की धोंकनी तथा लोहे की हथौड़ी और नेहाई बना कर काम चलाने लायक लोहे की कितनी ही चीज़ें तैयार कर ली थीं।

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