गाऊँगी और उनसे अपने अपराध की क्षमा माँगूँगी। वह संसार के परिचालक एक अद्वितीय हैं।
स्त्री की यह बात सुन कर एटकिंस स्थिर नहीं रह सका। वह अपनी स्त्री को साथ ले कर ईश्वर की उपासना करने लगा। इसी अवस्था में हम लोगों ने उनको देखा था।
मेरे टापू में धर्म की स्थापना हुई। किन्तु वह धर्म, हृदय के आग्रह से, आप ही उत्तेजित हुआ था। इससे सम्प्रदाय की संकीर्णता इस धर्म में न थी। किसी तरह की खुशामद या आडम्बर की आवश्यकता न थी।
धार्मिक दीक्षा के बाद उन लोगों का फिर से विधिवत् ब्याह हुआ। उस दिन के ऐसा आनन्द और उत्सव मैंने अपनी ज़िन्दगी में प्रायः कभी न मनाया था।
उन स्त्री-पुरुषों को धर्म-दीक्षित कर के ही पुरोहित सन्तुष्ट न हुए, प्रत्युत टापू में जो ३७ असभ्य थे उनको धर्म-शिक्षा देने के लिए वे व्यग्र हो उठे।
मैं इस प्रकार टापू में सामाजिक और धार्मिक शिक्षा का सूत्रपात करके जब जहाज़ पर सवार होने की तैयारी कर रहा था तब उस नव-युवक ने, जिसे निराहार के कष्ट से मैंने बचाया था, आकर मुझसे कहा-महाशय, आपने सबका ब्याह तो विधिपूर्वक करा दिया, एक और ब्याह करा कर तब आप जायँ।
उसकी बात सुन कर मैं दङ्ग होगया। क्या यह छोकरा इस अधेड़ दासी के साथ ब्याह करना चाहता है? मैं उसे समझा कर कहने लगा-"देखो भैया, कोई काम एकाएक कर डालना