मन स्थिर न था। कारण यह कि हवा रुक गई थी और समुद्र की तीक्ष्ण तरङ्ग हम लोगों को हठात् किनारे ही की ओर खींचे लिये जा रही थी। तथापि मैं सबको साहस देने लगा। ज्योंही असभ्य हमारे समीप पहुँचे त्योंही मैंने लंगर डालने का हुक्म दिया।
वे लोग बात की बात में हमारे जहाज़ के पास आ गये। मैंने जहाज़ के पालों को उतारने और लंगर डालने की आज्ञा दी। जहाज़ के सामने और पीछे एक एक नाव उतार कर उन पर कतिपय सशस्त्र नाविकों को इसलिए सवार किया कि यदि असभ्य लोग जहाज़ में आग लगाने की चेष्टा करेंगे तो नाविक लोग बालटी के द्वारा समुद्र का जल सींच कर आग बुझा देंगे।
किन्तु असभ्य लोग हम लोगों के समीप आकर और एक बड़ा सा जहाज देख कर एकदम भौंचक्का हो रहे। ऐसा प्रकाण्ड जहाज़ तो उन लोगों ने अपने बाप की ज़िन्दगी में आज तक कभी न देखा था। हम लोगों के साथ वे कैसा व्यवहार करें, यह उन लोगों की समझ में न आता था। तथापि वे लोग जान पर खेल कर एक बार जहाज के बिलकुल पास आये और हमारे जहाज को चारों ओर घूम कर देखना चाहा।
मैंने नाविकों से कहा-"ख़बरदार! उन लोगों को हमारे जहाज से भिड़ने मत देना।" यह हुक्म पाकर नाविकों ने उन असभ्यों को हाथ का इशारा देकर दूर रहने को कहा। उस इशारे का मतलब समझ कर वे लोग अपनी डोंगियों को हटा ले गये। फिर हमारे जहाज़ियों को लक्ष्य करके उन लोगों ने एक