लंगर डाला । वह नदी कहाँ से निकल कर किस देश से होती हुई समुद्र में आ मिली हैं, या उसका नाम क्या है, इन बातों
का कुछ भी ठीक पता न लगा; न वहाँ किसी आदमी को ही
मैंने देखा । देखने की लालसा भी न थी । उस समय मेरे
मन में यदि कुछ इच्छा थी तो केवल सुस्वादु जल की । मैं इस
मुहाने में सन्ध्या समय पहुँचा; अन्धकार होते न होते हम
लोगों ने जंगली जानवरों की इतनी अद्भुत भंयकर गुर्राहट
और चीत्कार सुना जिससे भय के मारे हमारे प्राण सूख गये ।
वे कौन पशु थे और कैसे थे, यह हम लोग न जान सके । हम
सारी रात भय विह्वल दशा में पड़े रहे, एक बार भी नींद न
आई । बड़े बड़े वन्य पशु समुद्र के जल में प्रवेश कर रात भर
स्नान, क्रीड़ा और भीषण चीत्कार करते रहे ।
आखिर हमने उन जन्तुओं में से एक को नाव की ओर तैर कर आते देखा । उसकी गुर्राहट और श्वास निश्वास के प्रक्षेप से जान पड़ा कि वह बहुत ही बड़ा हिंस्त्रजन्तु होगा । इकजूरी ने कहा-“वह सिंह है ।" मैं सिंह के सम्बन्ध में जो कुछ जानता था उससे मैंने भी वही निश्चय किया । बिचारा इकजूरी भय से मृतप्राय होकर, लंगर उठाकर नाव खोल देने के लिए, मुझ से अनुरोध करने लगा । मैंने कहा--- "नहीं, लंगर उठाने की कोई ज़रूरत नहीं, यदि ज़रूरत होगी तो लंगर की रस्सी को बढ़ा दूँगा । इससे नाव इतनी दूर चली जायगी कि फिर कोई जानवर पास न जा सकेगा ।" इतने में देखा कि वह पशु नाव से करीब दो लग्गी के फासले पर आ गया । मैंने अचम्भे में आकर झट कमरे के भीतर बन्दूक लाकर उस पर गोली चला दी । बन्दूक की आवाज़ सुनते ही वह तुरन्त तैरता हुआ किनारे की ओर लोट चला ।