पृष्ठ:राबिन्सन-क्रूसो.djvu/३७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३५०
राबिन्सन क्रूसो।

देश लौटने के लिए ऐसे संगी और सुयोग को हाथ से जाते देख मेरे मन में कई दिनों तक शान्ति न रही। नाविकों के रहने से तिजारत करने जाकर एक के दो करता। नये नये देश देखने में आते और जब चाहता घर को लौट चलता। किन्तु कुछ दिन के बाद मालूम हुआ कि वे लोग (अर्थात् जहाज के विक्रेता और उनके साथी) सत्यवादी नहीं, बड़े धूर्त थे। यह जहाज मलयदेश में वाणिज्य करने गया था। जहाज़ के कप्तान और कई नाविकों को मलयवासियों ने मार कर समुद्र में डाल दिया। इस दुर्वृत्तियोग से नाविक जहाज़ लेकर यहाँ भाग आये और दूसरे का जहाज़ अपने नाम से बेच कर चम्पत हुए।

हम लोगों ने इस बात को सुन कर भी इस पर विशेष ध्यान न दिया। उन लोगों ने चोरी की तो की, उससे हम लोगों का क्या? हम लोगों ने तो वाजिब दाम दे कर खरीदा है। चोरी का माल समझ कर तो लिया ही नहीं। हम लोगों ने कई अँगरेज़ और देशी नाविकों को नौकर रख करके फ़िलिपाइन और मलका आदि टापुओं से लवङ्ग और इलायची प्रभृति सौदा लाने के हेतु जाने की तैयारी की।

रवाना होने पर कई दिन तक हम लोग प्रतिकूल वायु के कारण मलक्के की खाड़ी में अटक रहे। हवा का ज़ोर कुछ कम पड़ने पर जहाज का लंगर उठा लिया गया। समुद्र में प्रवेश करने पर देखा कि जहाज के भीतर पानी आता है। हम लोग बहुत चेष्टा करने पर भी निश्चय न कर सके कि छिद्र कहाँ है, किधर से पानी पा रहा है। तब हम लोगों ने किसी बन्दर में आश्रय लेने के लिए कम्बोडिया नदी के मुहाने में प्रवेश किया।