प्रभातकालिक सूर्य की प्रभा में वह स्वच्छ तुषार की भाँति झकाझक कर रहा था। उस मकान की सफ़ेद दीवारों पर नीले रङ्ग की भाँति भाँति की तसवीरें अङ्कित थीं। इससे उसकी उग्र स्वच्छता कुछ कोमल हो गई थी। इस मकान की शोभा बड़ी विलक्षण थी। दल के मनुष्य रुके नहीं, नहीं तो मैं यहाँ कुछ दिन रह कर इस मकान को जी भर कर देख लेता। बाग़ के भीतर चीनी मिट्टी ही की मूर्तियाँ बनी थी। तालाब का घाट चीनी मिट्टी का बंधा था। चीनी मिट्टी का सफ़ेद हौज़ बना था। उसमें लाल रङ्ग की मछलियाँ थीं। सभी सुन्दर और सभी दर्शनीय थे।
इस मनोरम दृश्य को देखते देखते मैं दल से पीछे रह गया। दो घंटे बाद काफ़िले में आ मिला। इस भूल के कारण मुझे जुर्माना देना पड़ा और दलपति से क्षमा माँगनी पड़ी। यह भी अङ्गीकार करना पड़ा कि अब ऐसी भूल न करूँगा और सँभल कर रहूँगा।
दो दिन के बाद हम लोग चीन की प्रसिद्ध दीवार के पार हुए। तातार-देशीय डाकुओं के आक्रमण से देश को बचाने के लिए यह दीर्घ-दीवार बनाई गई थी। हमारे दल के लोग जितनी देर तक दीवार पार करते रहे उतनी देर तक मैं एक तरफ खड़ा होकर दीवार के चारों ओर जहाँ तक देख सका देखता रहा।
दीवार पार होते ही बीच बीच में अश्वारोही तातार डाकुओं के साथ भेट होने लगी। वे लोग निरे डाकू थे। मुसाफिरों का माल लूटना ही उनका काम था। उन लोगों के पास न कोई अच्छा अस्त्र-शस्त्र था, न वे लोग आक्रमण करने