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पृष्ठ:राबिन्सन-क्रूसो.djvu/४०१

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राबिन्सन क्रूसो।


तरह हाथ में खड्ग लिये खड़े थे। कई एक बकरे और अन्य चौपाये पड़े थे जिनका सिर काट लिया गया था। बेचारे निर्दोष पशुओं को पकड़ पकड़ कर जूजू देवता के आगे बलिदान दिया गया है।

ईश्वर की सृष्टि में जितने प्राणी हैं उन सब में श्रेष्ठ मनुष्य ही है। ईश्वर ने उसको ज्ञान दिया है। उस ज्ञान का ऐसा कुव्यवहार देख कर मुझे अत्यन्त खेद हुआ। अपने हाथ के बनाये एक अद्भुत आकार के पदार्थ को देवता समझ कर पूजना कैसी मूर्खता है? इस बात को सोचते सोचते मुझे अत्यन्त क्रोध हुआ। मैंने तलवार से उस मूर्ति के सिर पर की टोपी काट डाली, और मेरे साथी ने उसके बदन पर से चमड़े की ओढ़नी खींचली। जिन लोगों का वह देवता था वे लोग शोरो-गुल मचा कर रोने लगे। बड़ा हल्ला हुआ। देखते ही देखते तीन चार सौ आदमी धनुष-बाण लेकर वहाँ आ गये। लक्षण ठीक न देख कर हम लोग वहाँ से खिसक गये।

इस गाँव से चार मील पर हम लोगों के साथी वणिक डेरा डाले थे। तीन दिन वहाँ रह कर हम लोगों को कुछ घोड़े खरीदने थे। क्योंकि हम लोगों के अनेक घोड़े मार्गश्रम से बेकाम हो गये थे। समय का यह सुयोग पाकर हम तीनों ने सलाह की कि इस विचित्र देवता को किसी तरह ध्वंस करना चाहिए। एक काठ के कुन्दे को परमेश्वर मान कर पूजा करना परमेश्वर का अपमान करना है।

हम लोग तातारी का छद्मवेष धारण कर रात होने पर चुपचाप मूर्तिविध्वंस करने चले। ग्यारह बजे रात को