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पृष्ठ:राबिन्सन-क्रूसो.djvu/५१

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राबिन्सन क्रूसो ।


बारह दिन तक लगातार तूफ़ान बना रहा । हम लोगों ने कुछ आगा पीछा न सोच कर भाग्य के भरोसे जहाज़ को तूफ़ान के मुँह में छोड़ दिया । न छोड़ने तो करते ही क्या ? सिवा इसके दूसरा उपाय ही क्या था ? इन बारह दिनों में मिनट मिनट पर यही जी में होता था कि इस बार समुद्र हम लोगों को सदा के लिए अपने पेट में रख लेगा । वास्तव में किसी नाविक को जीवन की आशा न थी ।

विपत्ति के ऊपर एक दुर्घटना और हुई । लू लग जाने से हमारा एक नाविक मर गया और एक दूसरे नाविक तथा कप्तान के नौकर को, जहाज़ के ऊपर से, समुद्र की तीक्ष्ण तरङ्ग बहा ले गई ।

बारह दिन के अनन्तर तूफ़ान कुछ कम हुआ । कप्तान ने और मैंने देखा कि हम लोग ब्रेज़िल के उत्तरी भाग अमेज़ान नदी को छोड़ कर एक बड़ी नदी के पास गायना-उपकूल में आ गये हैं । कप्तान ने मुझ से पूछा किस रास्ते से जाना अच्छा होगा । उस समय जहाज़ के भीतर कुछ कुछ पानीं आ रहा था । जहाज़ पूरे तोर से ढोला पड़ चुका था । कप्तान की इच्छा ब्रेज़िल लौट जाने की थी । मैंने उसमें बाधा डाली । अमेरिका के उपकूल का नक़्शा देख कर तय किया कि केरिवो द्वीप के सिवा समीप में कोई ऐसा स्थान नहीं जहाँ आश्रय लिया जाय । तब मैंने बारबौडस द्वीप की ओर जाने का निश्चय किया और अटकल लड़ाई कि पन्द्रह दिन और चलने से हम लोग किसी न किसी बृटिश द्वीप में जाकर अफ्रीका जा सकने योग्य साहाय्य पा सकेंगे । चाहे जो हो, यात्रा करके अब लौट जाना ठीक नहीं । मेरी बुद्धि क्यों मुझे आपत्तिविहीन स्थान में ले जाने को सम्मत होती ?