भग्न जहाज़ का दर्शन
मैं जहाज़ के निकट पहुँच गया, किन्तु उस पर चढू़ँगा किस तरह ? जहाज़ टीले पर आ जाने के कारण उसका कोना बहुत ऊँचा उठ गया था। ऐसा कुछ सहारे को भी न था जिसे पकड़ कर उस पर चढ़ता। मैंने जहाज़ के चारों तरफ़ दो बार घूम घाम कर देखा एक जगह ऊपर से एक रस्सी लटक रही थी। बड़े कष्ट से उसे पकड़ कर में जहाज़ पर सामने की ओर चढ़ गया। ऊपर जाकर देखा, जहाज़ के भीतरी पेंदे में खूब पानी भर गया है, बालू के ढेर में अटके रहने के कारण उसका पिछला हिस्सा ऊपर की ओर उठ गया है और आगे का हिस्सा नीचे की ओर झुक कर पानी में डूबने पर है। मैं जहाज़ पर चढ़ कर खोज ने लगा कि कौन कौन वस्तु सूखी है। सब से प्रथम मेरी दृष्टि खाद्य-सामग्री के भण्डार की ओर गई। देखा कि उसमें अभी तक जल नहीं पहुँचा है । खाने की सामग्री ज्यों की त्यों रक्खी है। मैं भूखा तो था ही, झट मुट्ठी भर बिस्कुट ले कर खाने लगा और खाते ही खाते अन्यान्य वस्तुओं की भी खेज करने लगा। वह समय मेरा नष्ट करने का न था। मैंने जहाज़ में बहुत सी ऐसी चीजें देखीं जो मेरे काम की थीं। किन्तु उन चीजों को ले जाने के लिए पहले एक नाव चाहिए। वह अभी कहाँ मिलेगी ? मैं चुपचाप बैठ कर सोचने लगा।
जो चीज़ मिलने की नहीं है उसके लिए माथे पर हाथ
रक्खे मौन साध कर बैठ रहना वृथा है। नाव एक भी वहाँ
न थी, तब उसके लिए चिन्ता कैसी है किन्तु किसी वस्तु का