आँखें इस खूबी के साथ बनी हैं कि उनकी दृष्टि विशेष कर नीचे ही की ओर पड़ती है । ऊपर की वस्तुओं को वे सहज ही नहीं देख सकते । यह समझ कर के मैं बकरे का शिकार करते समय पहले ही उनसे उच्च स्थान में चढ़ जाता था, और फिर आसानी से उनका शिकार कर सकता था ।
पहले पहल मैंने एक बकरी का शिकार किया । उसके एक छोटा सा बच्चा था । वह उस समय दूध पी रहा था, यह देख कर मुझे बड़ा कष्ट हुआ । जब उस बच्चे की नवप्रसूता माँ धरती पर लोट गई तब बच्चा चुपचाप उसके पास खड़ा हो रहा । यह देखकर मैं दौड़ कर उसके पास गया और उसे गोद में उठा लिया । इसके बाद जब मैं उसे नीचे उतार कर बकरी को कन्धे पर उठाकर ले चला तब वह बच्चा मेरे पीछे पीछे मेरे किले तक आया । मैं उस बच्चे को गोद में उठाकर किले के अन्दर ले गया । मैंने उसे पोसना चाहा पर अभी तक उसे खाना न आता था । वह कुछ भी न खाता था । यह देख मैंने उसे भी मार कर अपने उदरानल की ज्वाला शान्त की । इन दोनों बकरों से बहुत दिनों तक मेरा खाना चला । मेरे पास रोटियाँ बहुत कम थीं, इसलिए मैं उन्हें बहुत बचा कर ख़र्च करता था । मांस मिल जाने से मैं बहुत निश्चिन्त हो गया ।
३०वींं सितम्बर को दो-पहर के समय मैंने इस जनशून्य एकान्त स्थान में पहले पहल पैर रक्खा । यहाँ आये जब दस बारह दिन हुए तब मैंने सोचा कि मेरे पास पञ्चाङ्ग(यन्त्री) नहीं है । तिथि का निर्णय करना पीछे कठिन हो जायगा । इसलिए मैंने एक तख़्ते पर अपनी छुरी से बड़े बड़े अक्षरों में लिखा–-
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