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पृष्ठ:राबिन्सन-क्रूसो.djvu/८१

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राबिन्सन क्रूसो।
 

अच्छा

मैं अपने साथियों से अलग हो गया, इसीसे अब तक बचा हूँ। जिन्होंने मेरे प्राण बचाये हैं, वही किसी दिन मेरे उद्धार का भी उपाय कर देंगे।

मैं मरुभूमि के अन्न-जलहीन देश में नहीं आ पड़ा हूँ। यहाँ खाद्य-सामग्री मिलती है। यह उष्ण-प्रधान देश है। ज़्यादा कपड़ों की भी आवश्यकता न होगी।

यहाँ मुझे दुश्मनों का भी कोई डर नहीं। यदि मैं आफ़्रिका के उपकूल में पहुँच जाता तो अवश्य प्राणों का भय था। ईश्वर ने विशेषकर मुझे काम में लगा रक्खा है और जहाज़ को स्थल भाग के समीप लाकर मेरे जीवन के लिए सभी आवश्यक वस्तुएँ दे दी हैं।

बुरा

मैं इस दुनियाँ से जुदा हो गया। संसारी लोगों से अब भेंट होने की संभावना नहीं।

 

मेरे पास खाने-पीने की सामग्री और पहनने-ओढ़ने के लिए कपड़े कम हैं।

 

मेरे प्राणधारण का कोई अवलम्ब नहीं। पास में ऐसा एक भी आदमी नहीं जो मुझ को धैर्य दे सके या जिसके साथ दो बातें कह कर मैं अपने जी का बोझ हलका कर सकूँ।

मतलब यह कि मेरी अवस्था संसार में विशेष शोचनीय होने पर भी ऐसा कुछ योग था जिसके द्वारा मुझे कुछ सान्त्वना मिलती थी। जब मैं अपने भले-बुरे की तुलना