कर, सींग और कानों को सीधे करके--खड़े हो गये । डर के
मारे कुत्ता उनके पास न जा सका ।
तीसरी जनवरी से लेकर १६ वीं अप्रैल तक--मैंने अपने किले के घेरे पर चारों ओर घास जमा दी, इससे बाहर से देख कर कोई नहीं जान सकता था कि यहाँ केई रहता है । ऐसा करने से पीछे मेरा बहुत उपकार हुआ ।
इस समय मुझे कोई काम न था । वृष्टि बन्द होते ही मैं जंगल में घूमने चला जाता था । एक दिन मैंने जंगली कबूतरों का बसेरा ढूँढ़ निकाला । वे पहाड़ की दरार और कन्दरओं में रहा करते थे । मैंने उनके कई बच्चों को लाकर पालने की चेष्टा की, किन्तु कुछ बड़े होने पर वे उड़ गये । मालूम होता है, खाद्य का अभाव ही उनके उड़ जाने का कारण हुआ । असल में उनको खिलाने के लायक मेरे पास. कोई चीज़ न थी । जो हो, मैं जब घूमने जाता था तब कबूतर के दो-चार बच्चे अक्सर ले आता था । इनका मांस बहुत स्वादिष्ट होता है ।
अब मुझे अनेक वस्तुओं की कमी से कष्ट-होने लगा । इस में भी दिये का न होना ख़ास तौर पर खटकता था । साँझ होते ही ऐसा अंधेरा हो जाता था कि बिछौने से अलग होना मेरे लिए कठिन सा हो जाता था । अफ्रिका से भागते समय मैंने मोमबत्ती जला जला कर रोशनी की थी; किन्तु यहाँ तो मेरे पास वह भो न थी । मैंने बकरी की थोड़ी सी चरबी रख ली थी । अब मिट्टी का एक दियाबना कर उसे मैंने धूप में सुखा लिया । उसी में थोड़ी सी चरबी तथा कपड़े की बत्ती डाल कर दिया जलाने लगा । इस से प्रकाश