पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१०१

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8७ रामचन्द्रिका सटीक। दुदुभिकी दशहू दिशि धाई । प्रात चली चतुरग चमू बरणी सो न केशव कैसे? जाई । यो सबके तनत्राननिमें झलकी अरुणोदयकी अरुणाई । अन्तरते जनु रजनको रजपूतन की रज ऊपर आई १६॥ सारस इस औ और जे खग पक्षी हैं ते खेचर कहे आकाशगामी भये जैसे मृगनायक सिंह जौन ग्रीवादि अग पकरि पायो सोई अग गहि मृगको ले भाग्यो ताही प्रकार अति भयसों आपने आपने बालकन को लै किन्नरादि भागे १५ किन्नरादि की या दशा देखि हास्यपूर्वक कारण देखिबे को धरणिधर भृग में चढ़े १६ हीसत बोलत १७ पाखर झूल १८ रजनको क्षत्रधर्म में रमित करिबे को मानौ रजपूतनपी रज रजोगुण रजपूती इति ऊपर कहिआये हैं १६ ॥ तोटकछंद ॥ उठिकै घरधूरि प्रकाश चली । बहु चंचल वाजिखुरीन दली। भुव हालति जानि प्रकाशहिये। जनु थंभित औरनि ठौर किये २० तारकछद ॥ रण राजकुमार अरूझहिंगे जू । अतिसंमुख घायनि जूझहिंगे जू ॥ जनु ठौरनि ठौरनि भूमि नवीने।तिनके चदिवेकहमारग कीने२१ सीताजू-तोटकछद ॥ रहि पूरि विमाननि व्योमथली। तिन के जनु टारन धूरि चली॥ परिपूरि प्रकाशहिं धूरि रही । सुगयो मिटि शूरप्रकाश सही २२ दोहा ॥ अपने कुलको क- लह क्यों देखहिं रवि भगवंत ॥ यह जानि अंतर कियो मानो मही अनत २३ तोटकछंद ॥ बहुतामहँ दीह पताक लौ । जनु धूममें अग्निकी ज्वाल बसे । रसना किधौं काल करालघनी। किधों मीच नचै चहुँ ओर बनी २४ दोहा॥ देखि भरतकी चलध्वजा धूरिन में सुख देत ॥ युद्धजुरन को मनहुँ प्रतियोधन बोले लेत २५ लक्ष्मण-दंडकछंद ॥ मारि