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पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१०२

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रामचन्द्रिका सटीक । डारौं अनुजसमेत यहि खेत भाजु मेटि परौं दीरधवचन निज मुरको । सीतानाथ सीतासाथ बैठे देखि छत्रतर यहि सुख शोषों शोक सबहीके उरको ॥ केशवदास सविलास बीसविस्वे वास होइ कैकेयी के अंगमग शोक पुत्रज्वर को। रघुराजजू को साज सकल लिड़ाइलेउँ भरतहिं आज राज देउ यमपुरको २६॥ से यके भयसों अथवा बालसों हालत जानिकै थभित कहे थोभ खम्भा | इति २० सन्मुख पाय जूझिकै पीर स्वर्गको जात हैं सो मानो राजकुमारन के स्वर्ग जाइवे को भूमिमांग कहे राह कीन्हे हैं २१ विमान आकाशगामी रथ व्योमयान विमानोऽस्त्रीत्यमरः" २२ मही जो पृथ्वी है। तेहिं अनंत कहे अनेक अंतर कियो अनेक धूरिक तुर्ग उठत है तेई अंतर व्यवधान हैं अथवा अनंत लक्ष्मण को सबोधन है २३ रसना जिला २४ । २५ पुत्रश्वर कहे पुत्रमरण चौबीसवें प्रकाश में कह्यो है कि जरा जब श्रावै ज्वराकी सहेली तहां ज्वरा शब्द मृत्युको वाची है रघुराजजू की साज अर्थ गजरथादि राजसान राज्य रामचन्द्रको है जाको ले ताके सब साज भरत सज हैं तिन्हें छड़ाइ रामचन्द्र में साजिकै राज्य में बैगरिये इत्यर्थः पिताने भरत को राजा फियो है तासों भरतको राज्यपद भ्रष्ट होइ तो पिता को वचन निष्फल होइ या हेतु भरतको यमपुरको राज्य दे जामें रामचन्द्र सुचित है अयोध्या में राज्य करें इति भावार्थ: २६ ।। दोहा ॥ एकराज में प्रकट जहें दै प्रभु केशवदास ॥ तहां बसतहै रैनदिन सूरतिवत विनास २७ कुसुमविचित्राचंद ॥ तब सब सैना वहि-थल राखी । मुनिजन लीन्हे सँग अभि- लोखी। रघुपति के चरणन शिर नाये। उन हँसिकै गहि कंठ लगाये २८ भरत-दोधकछंद ॥ मातु सबै मिलिबे कहँ आई।ज्यों सुतकी सुरभी सुलवाई ॥ लक्ष्मण सह उठिकै रघुराई । पायन जायपरे दोउ भाई २६ मातनि कठ उठाइ )