पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१०५

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- रामचन्द्रिका सटीक । | जनायो कि इनकी मायामें मैं मोहिकै तुम्हारी मातै इनको वनगमन चायो४३॥ दोहा॥ यह कहिके भागीरथी केशव भई अदृष्ट । भरत कह्यो तब रामसों देहु पादुका इष्ट ४४ उपेंद्रवज्राछद ॥ चले बली पावन पादुका लै। प्रदक्षिणा रामसियाहु को दे॥ गये |ते नदीपुर वास कीनो । सबंधु श्रीरामहिं चित्त दीनो ४५ दोहा ॥ केशव भरतहिं आदिदै सकल नगरके लोग ।। वन समान घरघर बसे सकल विगत सभोग ४६ ॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचननकोरचिन्तामणिश्री- रामचन्द्रचन्द्रिकायामिन्द्रजिविरचितायांभरतस्य चित्रकूटागमनंनाम दशमः प्रकाश. ॥१०॥ पादुकारूपी इष्ट कहे स्वामी देहु आशय यह कि राज्य पर स्वामी चाहिये ४४॥४५॥ ४६॥ इति श्रीमनगजननिजनकजानकीजानकीजानिप्रसादाय जनजानकीप्रसाद निर्मितायां रामभक्तिमकाशिकाया वशमम्प्रकाशः ॥१०॥ दोहा ॥ एकादशै प्रकाशमें पचवटीको वास ॥ सूर्पणखा के रूपको रघुपति करि हैं नास १ भरतोद्धताछंद चित्र- कूट तब रामजू तज्यो। जाइ यज्ञथल अत्रिको भज्यो॥राम लक्ष्मण समेत देखियो । आपनो सफल जन्म लेखियो २ चन्द्रवर्त्मचंद | स्नान दान तप जाप जो करियो । शोधि शोधि मन जो उरधरियो।योग याग हम जालगिगहियो। रामचन्द्र सबको फल लहियो । वंशस्थाछंद ॥ अनेकधा पू- जन पत्रिजू कखो। कृपाल कै श्रीरघुनाथजू धखो ॥ पति- बता देवि महर्षिकी जहां। सुबुद्धि सीता सुखदा गई तहां ४ दोहा । पतिव्रतनकी देवजा अनसूया शुभगाथ ॥ सीताजू अवलोकियो जरा सखीके साथ ५ चतुष्पदीछद ॥ शिर श्वेत