पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१०९

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रामचन्द्रिका सटीक। १०५ है औ गिरे जे पुष्प है ते ई पुष्प विछावने हैं कोकिल गारत है मोर नाचत हैं सारो शुक बखान करत हैं वेश्यादि नृत्यकारिनहू में बखानकर्ता एक रहत है १८॥ लक्ष्मण-सवैया ॥ सब जाति फटी दुखकी दुपटी कपटी न रहे जहें एक घटी। निघटी रुचि मीचघटी हु घटी जग जीव यतीनकी छूटी तटी॥अघोधकी बेरी कटी बिकटी निकटी प्रगटी गुरुज्ञानगटी। चहुंओरन नाचति मुक्ति नटी गुण धूरजटी वनपंचवटी १६ ॥ दुपटी द्वैपाटके ओदिनेको धन सो जहाँ जा पंचवटीके निकट सब फाटि- जाति है नैकहू नहीं रहति अर्थ सब दुःख जहाँ नशिजात हैं औं कपटी जीव जहां एक घड़ी नहीं रहत यासों या अनायो कि जहां जातही कपटी को कपट दूरि होत है औ जाकी शोभा निरखि जगके जे यती तपरवी जीव हैं तिनकी तटी कहे ध्यान स्थिति सो छुटी औ मीचकी रुचि घटीह घटी कहे घरीघरी में निपटी घटतभई अर्थ यती जीवनको मरेते मुक्ति होति है परंतु जा स्थानकी शोभा निरखि मुक्किएकी इच्छा नहीं करत अघ पाप श्रीष समूह पेरी बधन जंजीर सो ऐसी जो पचपटी है सो धूर्जटी को महादेव हैं सिनके गुणनों जटी कडे युक्त है येई दुःखनाशनादिगुण महादेवहू मों हैं अथवा ये जे दुःखनाशनादि गुण हैं तिनसों औ धूर्जटी जे महादेव हैं तिनसों जटी कहे युक्त है पचवटी १९ ॥ • हाकलिकाछंद । शोभित दंडककी रुचि बनी। भांतिन भौतिन सुंदर घनी ॥ सेव बड़े नृपकी जनु लसै। श्रीफल भूरिभाव जहँ बसै २० बेरभयानकसी अतिलगै । 'अर्क समूह जहां जगमगै॥ नैननको बहुरूपन असे । श्रीहरिकी जनु मूरतिलसै २१ ॥ दंडकनाम राजा रहे हैं तिनको राज्य शुक्रके शापसी वन बैगयो है तासों दिंडकारण्य, कहावत है रुचि शोभा श्रीफल बेल औ लक्ष्मीको फल बड़े राजा की सेवा में बहुंत द्रव्य पाइयत है २० भयानक बेर प्रलयकाल अर्क मदार