रामचन्द्रिका सटीका १०७ जे तरंग हैं तिनके जे तुंग समूह हैं तिनकी जे अवली पाती हैं तिनकी चारु कहे अच्छी भाति संचारिणी चलावनहारी है अर्थ अनेक तरणें उठायो करति है अथवा तरग तुंगावलिन करिकै चारु सचारिणी चलनहारी है अलि भ्रमरयुक्त जे कमल हैं तिनके सौगध सुगध करिकै लीला है मनो हारिणी जाकी श्री अलियुक्त कमलन करिकै बहुनयन में देवेश इद्र हैं तिनकी शोभा की मानों धारिणी धारणकी है इन्द्रफे सहस्त्र नेत्र हैं इहां नेत्रसदृश अलियुक्त कमल हैं २४ ॥ दोधकछद ॥रीति मनों अविवेक कि थापी । साधुन की गति पावत पापी ॥ कजजकी मति सी बड़भागी। श्रीहरि मंदिर सों अनुरागी २५ अमृतगतिमंद ॥ निपट पतित्रत घरणी । जगजनके दुखहरणी ॥ निगम सदा गति सुनिये । भगति महापति गनिये २६ ॥ कजज ब्रह्माकी मतिहको अनुराग हरिमंदिर पैकुंठ में है श्री गोदावरीहू को है काहेते जो कोक स्नान करत हैं ताको आपनो जानि वैकुट पठावति है २५ या विरोधाभास है सदापति जो समुद्र है तामें लीन रहति है तासों निपट पतिव्रत धरणी को विरोध पक्ष में दुःख काम पीड़ा अवरोध में पापजनित दुःखदरिद्रादि निगम जो वेद हैं तिनमें सदागति कहे सदा है गवि मुक्ति जासों ऐसी सुनियत है अर्थ जो कोऊ स्नान करत हैं ताको मुक्ति, देति है औ पति जो समुद्र है ताहीको प्रगवि सुनियत है अर्थ ताको गति मुक्ति नहीं देति यह विरोधार्थ है अविरोधहूकी अगति गमनरहित समुद्रको जल बहत नहीं २६ ॥ दोहा । विषमै यह गोदावरी अमृतन को फल देति ॥ केशवजीवनहार को दुख अशेष हरिलेति २७ त्रिभंगीछद ।। जब जब धरि बीना प्रकट प्रवीना बहुगुणलीना सुखसीता। पिय जियहि रिझावै दुखनि भजावै विविध बजावै गुण- गीता । तजि मति संसारी विपिन विहारी दुख सुखकारी
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