रामचन्द्रिका सटीक । शुभ डारिदी पगढारिकै २२ दोहा । सीताके पदपद्मको नपुर- पटजनि जानु । मनहुँ कसो सुग्रीव पर राज श्री प्रस्थान २३ यद्यपि श्रीरघुनाथ जू सम सर्वग सर्वज्ञ ॥ नरकैसी लीला करते जिहि मोहत सब अज्ञ २४ राम-सवैया । निज देखो न हौं शुभगीतहि सीतहि कारण कौन कहौ अवहीं अति मोहितके वन मांझ गई सुरमारगमें मृग माखो जहीं। | कटुवात कळू तुमसों कहि आई किधों तेहिं त्रास डेराइ रहीं। अब यह पर्णकुटी किधों और किधौं वह लक्ष्मण होई नहीं २५ ॥ १६ प्रचंडपद जटायु रावण रथ तीनों को विशेषण है सकत है विपक्ष | शत्रु रावण २० तीनि औदै कहे पांच अथवा दै तीनि कहिवेकी रीति स्वभावोक्ति है हरि वानर २१ उत्तरीय ओदिवेको वस्त्र २२ जप प्रस्थान | भयो तप भाप आयोई चाहै २३ सम कहे सदा एकरस रहत हैं श्रौ सर्पग कहे सर्वत्र व्यास है औं सर्वज्ञ कहे सप जानत है २४ जो हमारे स्वरसों हा लक्ष्मण ! यह कहिके मृग माख्यो है सो हमारो शब्द जानि ताही स्वर के मार्ग है हमारे बड़े हितसी बनके मध्यमें गई है कि हे लक्ष्मण ! यह | पर्णकुटी है कि कछू औरई वस्तु है नौ कि वह पर्णकुटी नहीं है और पर्णकुटी है २५॥ दोधकछदं ॥ धीरजसों अपनो मन रोक्यो । गीधजटायु पखो अवलोक्यो ॥छत्र ध्वजा रथ देखिके बूभयो । गीध कहो रण कौनसों जूझ्यो २६ जटायु ॥ रावण लैगयो राघव सीता। हारघुनाथ रटै शुभगीता ॥ मैं बिन छत्र ध्वजा स्थ कीनो । द्वैगयो हौं बल पक्षविहीनो २७ में जगमें सब ते बड़भागी। देहदशा तव कारण लागी॥ जो बहुमां- तिन बेदन गायो। रूप सो मैं अवलोकन पायो २८ राम ॥
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