पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/११९

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3 रामचन्द्रिका सटीक। साधु जटायु सदा बड़भागी। तो मन मोवपुसों अनुरागी॥ छूट्यो शरीर सुनी यह बानी । रामहिं में तपज्योति समानी २६ तोटकछंद ॥ दिशि दक्षिणको करि दाहु चले । सरिता गिरि देखत वृक्ष भले ॥वन अध कबध विलीकतहीं। दोउ सोदर बैंचलिये तबही ३० जब खैबेहिको जिय बुद्धि गुनी । दुहुँ बाणनि लै दोउ बांह हनी ॥ वह छोडिकै देह चल्यो जवहीं। यह व्योम में बात कह्यो तबही ३१ मोटनक छंद ॥ पीछे मघवा मोहिं शाप दई ।गते राक्षसदेह भई ॥ फिरिकै मघवा सइयुद्ध भयो। उन क्रोधके शीशमें वज्र हयो ३२॥ २६ । २७ दशा अवस्था अर्थ यह कि यह देह की औ यह वृद्धा वस्था तुम्हारे कळू उपकारके लायक नहीं रही तासों तुम्हारो उपकार भयो औ ऐसो जो तुम्हारो रूप है ताको देख्यो तासो जगमें मैं सबसौं बड़भागी हो २८ अर्थ सायुज्य मुक्ति पायो २६ । ३० । ३१ बाहुदई पर्यत तीनि छदके क्षेपक हैं पीछे कहे पूर्वहीं ३२ ॥ दोहा ।। गयो शीश गड़िपेटमें परखो धरणिपर पाय॥ कछु करुणा जियमों भई दोन्ही बाहु बढ़ाय ३३ बाहुदई देकोसकी आवै तेहि गहि खाउ ॥ रामरूप सीताहरण उध- रहु गहन उपाउ ३४ सुरसरिके आगे चले मिलिहैं कपि सुग्रीव ॥ देहैं सीताकी खबरि बाटै सुख भतिजीव ३५ तोटकछंद ॥ सरिता यक केशव शोभरई । अवलोकि तहां चकवा चई ॥ उरमें सियपीति समाइरही। तिनसों रघु- नायक बात कही ३६ अवलोफतहौ जनहीं जबहीं। दुख होन नुम्हें तवहीं तवहीं ।। वह वैर न चित्त कळू धरिये । सिय देहु बताय कृपा करिये ३७ शशिके अवलोकन दरि