पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१३

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१० रामचन्द्रिका सटीक । हैं अर्थ जिनको सुयश दिशि विदिशन में छाइरह्यो है औ जिनको मन लोभ औ मोह ौ मद औ कामके वश नहीं भयो राज्य त्यागादि सों लाभ विवश जानो माता पिताको दुखित हुये देखि वनगमन करनादि सों मोह विवश जानो नौ अगस्त्यादि ऋषिन के यथोचित सत्कारसों मद विवश जानो एकपत्नीबनसों काम विवश जानो जाके ऐसे स्वभाव गुण हैं सोई श्रीराम वाराहादि अवतारन में मुनिश्रेष्ठ अवतारी कहे अवतार को घरे साक्षात् परब्रह्म हैं अथवा श्रीरामअवतारी कहे अनेक अवतारन को धरत हैं औ परब्रह्म हैं १७ अदृष्ट अन्तर्धान इष्ट पूज्य देवता १८ ॥ गाहाछंद ॥ रामचन्द्रपदप वृंदारकवृंदाभिवंदनीयम् ॥ केशवमतिभूतनयालोचनं चंचरीकायते १६ ॥ चतुष्पदीछंद। जिनको यशहंसा जगत प्रशंसा मुनिजनमानसरंता । लोचन अनुरूपनि श्यामस्वरूपनि अंजनजित संता ॥ कालत्रयदर्शी निर्गुणपर्शी होत विलम्ब न लागै। तिनके गुण कहिहों सब सुख लहिहाँ पाप पुरातन भागै २० ॥ वृंदारक जे देवता हैं तिनके छंद समूह तिन करिकै अभिनंदनी अर्थ जिनको अनेक देवता वंदना करत हैं ऐसे जे रामचन्द्र के पदपद्म पदकमल हैं तिन तन प्रति केशवदास की मतिरूपी जो भूतनया सीता हैं ताके लोचन चंचरीकायते कहे चंचरीक भ्रमर के ऐसे आचरण करत हैं अर्थ जब मुनिकी आज्ञासों रामचन्द्रको इष्टदेवता करयो तब सीतासम सदा राम निकटवर्तिनी हमारी मति के लोचन कमल में भ्रमर सदृश रामचन्द्र चरण में अनेक कौतुक करनेलगे १६ मानस मानसर औ मन आय आपने लोचननके अनुरूप कहें योग्य और के लोचनके योग्य कज्ज- लादि अंजन है संतन के लोचनन के योग्य रामरूपही है ऐसे में जिन रामचन्द्र के अनेक प्रतिबिंब श्यामस्वरूपरूपी अंजन है तिनकरि जे संत अंजित हैं अर्थ रामचन्द्र के प्रतिबिंब रूपनको जे संतजन ध्यान में आनत हैं अथवा श्यामस्वरूपनि कहे श्यामरूपतारूपी जो अंजन है ताकरिके जे संत अंजित हैं तिन संतनको त्रिकालदर्शी औ निर्गुणपर्शी नेत्रन करि ज्योति स्पर्श करै या अर्थ ब्रह्मज्योति के द्रष्टा होत वेर नहीं लागति जे रामचन्द्रको ध्यान करत हैं ते त्रिकालदर्शी होत हैं औ ब्रह्मज्योति को