पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१३१

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१२८ रामचन्द्रिका सटीका श्री मुकुत कहे त्यक्त है इसक जे हस हैं तिनका सुखदायी शब्द जामें वर्षा | में हंस उडिजात हैं यह प्रसिद्ध है औ भवर जो आकाश है तामें बलित कहे युक्त नीलकठ ने मार हैं तिनकी मतिको मोहै कहे प्रसन्न करति है कालिका कैसी है कि भौहे है सुरचाप इंद्रधनुषहू ते चारु जाकी औ प्रमु दित कहे उम्मत हैं पयोधर स्तन जाके भूषणनमें जराइ कहे जराऊ जो ज्योति है तामें तड़ित जो बिजुली है ताकी तरलाई चंचलताहै अथवा भूषणमें जडाऊ की जो ज्योति है सो जटित समरलाई कहे योजित है अर्थ | भूषणन में रत्ननकी ज्योति बिजुलीसम दमकति है रवजटित भूषण जड़ाऊ करत हैं औ दुरिमीनी है गुख मुग्व कदे सहन मुखही न शशी जो चन्द्र ई तारी एग्वमा शामा अर्थ मानमुख एमो हरिमान् है जामें चन्द्र पति पद हाति है भी अगल को स्वच्छ ज नयन है निनकरिके कमल दलकी निका दलित है अब निनो नयननके मागे कमलनकी छपि दलि जानि है श्री केश कहा कि पल - नीको ना करणुका हरितनी का गमन है तागी हरणहारी, श्री मुकुन कहे रग्यो अध उपरित जो उसक कह विभा शबसाई मुम्दायी नाको अर्थ जाके चलन म सपनाकामा रियान शमन हो है पर जा रख इनामें तलिम नालकट महानगर निनकी मनिश गोदन है यहां कालीपन त पानी जानी ॥ तारस छद ॥ अभिसारिनिसी सममें परनारी । सतमा- रग मेटनको अधिकारी॥मति लोभ गहामद मोहछयी है। द्विजराज सुमित्र प्रदोषमयी है २१ दोहा ॥ बरणत केशव सफल कवि विपम गाढतम सृष्टि || कपरपसेवा ज्यों भई सतत मिथ्या टष्टि २२ चन्द्रकलाद ॥ कलहम कलानिधि सजनक्जक्यू दिन केशव देसि जिये। गति प्रानन लोचन पायनके अनरूपकसे मन मानि लिये ॥ यहि कालकरालते शोधि सबै हठिके परपामिस दूरि किये। अव धौ विन प्राण पियारहि है कहि कौन हितू अवलपि हिये २३ ॥