रामचन्द्रिका सटीक । पियें एक हाला गुहें एक माला । बनी एक बाला न. चित्रशाला॥ कहू कोकिला कोककी कारिकाको । पढावें मुनाले शुकी सारिकाको ५२ फिखो देखिकै राजशाला सभाको । रह्यो रीझिक वाटिकाकी प्रभाको ॥ फिखो बीर चौहूचितै शुद्धगीता। बिलोकी भली शिंशपामूलसीता ५३॥ ४६ । ५० किभरी सारगी बांसुरी में गीत गावती हैं अथवा बांसुरीसम गीत गावती हैं ५१ हाला मदिरा सुष्टु जे पालय घर तिनमें शुकी और सारिका मैना कोकिला जे हैं ते कोकशास्त्र की कारिका पढ़ानती हैं अथवा स्त्री कोकिला सम पढ़ाती हैं ५२ या प्राकार सब स्थानन में फिस्यो सो ऐसी राजशाला सभा कहें राजभवनमें खिनकी सभाको देखिकै रीमि रह्यो अथवा या प्रकार राजशाला औ राजसभाको देखिकै रीकि रखो जब सीताको तहां न देख्यो तप वाटिकाकी प्रभाको फियो अर्थ वाटिका को गमन करयो शुद्धगीता सीताको विशेषण है शिशपा सीसौ अथवा अगुरु "पिच्छिलागुरु शिशपा इति विश्व " ५३॥ । धरे एक बेनी मिली मैलसारी। मृणाली मनो पंकसों काढि डारी ॥ सदा रामनामै रै दीनबानी। चहूवीर हैं एकसी दु-खदानी ५४ असी बुद्धिसी चित्त चिंता न मानो। कियो जीग दतावली में बखानो॥किधौं घेरिकै राहु नारी नलीनी। कलाचन्द्रकी चारु पीयूषभीनी ५५ किधों जीव को ज्योति माया नलीनी। अविद्यानके मध्य विद्या प्रवीनी॥ मनो संबरस्त्रीन में काम वामा। हनूमान ऐसी लखी राम- रामा ५६ तहां देवद्वेषी दशग्रीव पायो । सुन्यो देवि सीता महादुःख पायो॥ सबै अंगलै अंगही में दुरायो । अधो दृष्टिक अश्रुधारा बहायो ५७ रावण ॥ सुनो देवि मोपै कडू दृष्टि दीजै। इतो शोच तो रामकाजै न कीजै ।। बसैं दंड- कारण्य देखे न कोऊ। जो देखे महाबावरो होय सोऊ ५८॥
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