1 रामचन्द्रिका सटीक। पकसष्टश मैल सारा है कहू पंक शोकाधिकारी पाठ है तो मानों पंकयुक्त मृणाली है शोकाधिकारी कहे अतिशोकयुक्त दुहुनको विशेषण है ५४ । ५५ ससारविवेकिनी धुद्धि अविद्या है ईशरविवकिनी बुद्धि विद्या रामा स्त्री ५६ प्रति लाज भयों श्रग सिकोरिकै बैठी ५७ चारि छदको अन्वय एक है रावण कहत है कि हे देवि ! ऐसे जे रामचन्द्र तिनको शोच | ना करो हम जे तुम्हारे सदा दास हैं तिनपै कपा काहे नाही करियत जासों प्रदेवी दैत्यत्री देवागना तिनकी रानी होउ भो वाणी सरस्वती श्री मघोनी इद्राणी मृडानी पार्वती तुम्हारी सेवा करें औ किमरी सारंगीलिये किमरी किन्नरकन्या तुम्हारे समीप गीत गावे भी मुकेशी और उर्वशी ना. तुमसों मान कहे पादर पावै या आपनो प्रभाव देखायो कि ये सब इद्रादि मेरे आज्ञाकर हैं रामचन्द्र कैसे हैं दंडकारण्य में बसत है अर्थ वनवासी है औ ऐसे छपे रहत हैं जिनको कोऊ बहू देखत नहीं श्री' जो देखत है सो | महावाबरो. आपने तनकी औ भवनादि की सुधि भूलि जात है यासों या जनायो कि बावरो होन है ताही को संग्रह कोऊ नाही करत औ वे ऐसे हैं | जिनको देखत औरऊ वावरो होनहै तासों शोच करिधे लायक नहीं हैं अनाथ के अनुसारी कहे अनुगामी हैं अर्थ यह कि काहू बड़े के अनुगामी नहीं हैं " तुम्हें देवि दूरै हितू ताहि मानें " इत्यादि दुवौ वचन भेद उपायके हैं | सरस्वती उतार्थ हे देवि, हे जगदब! हम पर कछु कृपादृष्टि दीजै अर्थ तुम्हारी नेक कपाश्रष्टि सों हमारो भलो होत है औ रामचन्द्रके काज एती शोच काहे को करती हो रामचन्द्र शोचनीय नहीं हैं काहे ते वे ऐसे मतापी हैं कि निर्जन दबकारण्य में बसते हैं श्राशय कि अति निर्भय हैं औ देखें न को अर्थ अनेफ ध्यानादि उपाय योगीजन जिनके देखिबेको करत हैं साहू पर दर्शन नहीं पावत सो छठये प्रकाश में कया है कि "सिद्ध समाधि समें अजहूं न कह जग योगिन देखन पाई" औ जो देखत है अर्थ जाको दर्शन होत है सो महायावरी होत है अर्थ वावरे सम संसार सुख को त्याग करि जीवन्मुक्त है जात है अथवा पावरेसम देहकी सुधि नहीं रहति जैसे | सुतीक्षण को भयो अथा महायानरो महादेन होड अर्थ गहाटेत्र सम भाव को मातहाइ ५८॥ कृतघ्नी कुदाता कुकन्याहि चाहे । हिनु नग्न मुडी नहीं को सदा हैं ॥ अनाथै सुन्यो मैं अनाथानुसारी । वसे चित्त-
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