१४० रामचन्द्रिका सटीक । अतिसेवक हैं अतिशूरशक्त । अरु यदपि अनुज तीन्यो समान पैतदपि भरत भावत निदान ७५ ज्यों नारायण उर श्रीवसति। त्यो रघुपति उर कल्लु युति लसति ॥ जग तितने हैं सब भूमिभूप । सुर असुरन पूजें रामरूप ७६ सीताजू- निशिपालिकाछंद ।मोहिं परतीति यहि भांति नहिं श्रावई। प्रीति कहि धौ सुनर वानरनि क्यों भई ॥ बात सब वर्णि पर- तीति हरि त्यो दई । आंसु अन्हवाइ उरलाइ मुंदरी लई ७७ दोहा। मांसु बरपि हियरे हरषि सीता सुखद सुभाइ । नि- रखि निरखि पियमुद्रिकहि पति हैं बहुभाइ ७८॥ पक्ष जो है शातिवर्ग तासों विरूप कहे, अन्यरूप ७१ खेद र पाप छल यह ईद छ। चरणको है सासों गाथा 'जानो यथा वृत्तरत्नाकरे " शेष गाथास्त्रिभिः षड्भिश्चरणैचोपलक्षिताः " माघको दूसरो छन्द छः चरण को है ७२ । ७३ कछु कहे गुणादिकनमों काहूको लक्षण कहौ ७४ शक्त समर्थ ७५ न पूर्फ कहे समता नहीं करत ७६ ॥ ७७ भाइ कहे अभिमाय ७८॥ पद्धटिकाबद । यह सूरकिरण तमदुःखहारि। शशिकला किधौं उरश्रीतकारि ॥ कलकीरतिसी शुभ सहित नाम । के राज्यशिरी यह तजी राम ७९ कै नारायण उर सम लसति । शुभ अंकन ऊपर श्रीबसति ॥ वरविद्यासी पानददानि । युत अष्टापद मन शिवा मानि ८० जनु माया अक्षर सहित देखि । के पत्री निश्चय दानि लेखि ॥ प्रिय प्रतीहारिनी सी निहारि । श्रीरामो जय उच्चारकारि८१ पिय पठई मानो सखि सुजान । जगभूषणको भूषणनिधान ॥ निज आई हमको सीख देन । यहि किषों हमारोमरम लेन ८२॥ हमारो तम भाकारसदश जो दुव है की हरनहारी है ताने कधी सूर्पकी किरण है कल को अपिन मुदिकसमें रामनाम लिस्या है श्रो कारनिहू ना पाणी की होनि है नाके नागके साथही रहनि र मधम ताको
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