पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१४४

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रामचन्द्रिका सटीक । १४१ नाम कहि कीरति कही जाति है राज्यश्रीहको रामचन्द्र छोड्यो है औ याहूको छोड़यो है ७६ नारायणके उरमें अक जो गोद है लापर श्री वसति है अथवा अक कहे श्रीवरसादि चिह्ननपर श्री बसति है मुद्रिका में श्रीरामो जयति लिख्यो है वहां रामो जयति इन अंकनके ऊपर श्रीक लिख्यो है शिवा पार्वती पक्ष अष्ठापद कहे पशु पशुपदते सिंह अथवा पम जानो "अष्टापदः शारिफले सुवर्णे स्त्री पशौ पुमान् इत्यमरः"मुद्रिकापद सुवर्ण ८० अक्षर विष्णु औ अक पिय ने रामचन्द्र है सिनकी प्रतिहारिणी चोप- दारिनी है यामें श्रीरामो जयति लिख्यो है प्रतिहारको नामोचार करिवो धर्म है ८१ सखी कैसी है जगके जितने भूषण गहने हैं तिनको जो भूषण कहे भूषियों है साको निधान भाड़ा है अर्थ अनेकमकारसों भूषण पहिरा- इवे में चतुर है औ मुद्रिका कैसी है जगभूषण जे रामचन्द्र हैं तिनके भूषण को निधान कहे भांड़ा है अर्थ जब याको रामचन्द्र पहिरहत हैं तब अनेक भूषण पहिरेसम अपनाको मानत हैं अथवा जप या मुद्रिकाको धारण करत हैं तब अनेकभूषण पहिरेसमान छपि होति है अथवा जगफे जे भूषण | गहने हैं तिनको जो भूषण है सो माता को निधान कहे भांड़ा है काहेते | मोहर है सब राज्यको व्यवहार मोहर के भकनसों सही होत है ८२ ॥ दोहा॥ सुखदा सिखदा अर्थदा यशदा रसदातारि ।। रामचन्द्रकी मुद्रिका किधौं परमगुरुनारि २३ बहुबरणा सहज प्रिया तमगुणहरा प्रमान ॥ जगमारग दरशावनी सूरजकिरण समान ८४॥ परमगुरुनारि कैसी है कोमल भाषणादि करिकै सुखदा है श्री सिख दाता है कि कुलांगनन को ऐसो करिबो उचित है सो करौ औ अर्थ जो प्रयोजन है ताकी दाता है कि सिनको प्रतिव्रतसों देवलोकगमन होत है यह पतिव्रत में देवलोकगमनरूप जो प्रयोजन है ताको देति है औ पति- वस साधब करार यश देति है औ अनेक वचन चातुर्यादिरस कहे गुण देति है प्रो मुद्रिका दर्शनों सुखदा है औं सिखदाता है। काहेते शिक्षा दियो कि धैर्य धरो श्री अर्थ प्रयोजन की दाता है काहे ते रामचन्द्रको संदेशाप हमारो प्रयोजन रहो ताको दियो अथवा अर्थ को ज्ञान है नाको