पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१४६ रामचन्द्रिका सटीक । रारऊन दून सूतसों कसी॥ पूछ पौनपूतकी सवॉरिवारिदी- जहीं। अंगको घटाइके उडाइ जात भीतही ५ चचरीछद ॥ धाम धामनि आगिकी बहुज्वालमाल विराजहीं । पवनके झकझोरते मॅझरी झरोखनभ्राजहीं॥ वाजि वारण शारिका शुक मोर जो रण भाजहीं। क्षुद्र ज्यों विपदाहि श्रावत छोड़ि जात न लाजहीं ६ भुजगप्रयातछद ॥ जटी अग्निज्वाला अटा श्वेत हैं यों । शरत्कालके मेघ सध्यासमै ज्यों ॥ लगी ज्वाल धूमावली नील राजै । मनो स्वर्णकी किंकिणी नाग साले ७ लसैं पति क्षत्री मठीज्वाल मानौ । ढके अोढ़नी लंकवक्षोज जानौ । जरेज़हनारी चढी चित्रसारी। मनो चेटका में सती सत्यधारी ८ कहूं रौनिचारी गहे ज्योति गाढ़े। मनो ईशरोषाग्नि में काम डाढे ॥ कहू कामिनी ज्वालमालानिभोरें। तमें लालसारी अलंकारतोरे ॥ तूलरुई पाससी वस्त्र ५ झैझरीके जे झरोखा कहे छिद्र हैं तिनमें भ्रा- जहीं कहे शोभित हैं जैसे क्षुद्र पाणी जाके पास रहत हैं ताको कल्ड विपत्ति परै तो सहाय नहीं करत ताको छोडिकै भागत है लजात नहीं हैं वैसे अग्नि दाहकी जो विपत्ति है तामें वरणादि सब भागत भये ६ नाग कहे हाथी,७ वक्षोज कुचसम पीत क्षत्री है श्रोदनी सम अग्निज्वाल है - भोरे कहे भ्रमसी अलंकार ,स्वर्णभूषण है। वह भौन राते रचे धूम चाही। शशी सूर मानोलसे मेघ माहीं ॥ जरै शस्त्रशाला मिनी गधमाला। मिलै अदि मानो लगीदारमाला १०चलीभागि चौहदिशाराजधानी मिली ज्यालमाला फिरेंदु खदानी॥मनो ईशवाणावलीलाललोलें। सबै दैत्यजायानके संग डोले ११ सवैया ॥ लंक लगाइदई हनुमत विमान वचे अतिउच्च रुसी है। पात्रि फटें उनटे