रामचन्द्रिका सटीक । १४७ बहुधामणि रानी र पानी पानी दुखी? ॥ कचनको पविल्यो |पुर पूरपयोनिधि में पसरेति सुखी है। गगहजारमुखी गुनि केशौ गिरा मिली मानो अपार मुखी है १२ ॥ शशी कहे श्री जो प्रताप है त्यहिसहित प्रताप रहित सूर्यको रगश्वेत है प्रताप सहित अरुण है तासों शशी कयो अथवा कि शशी कहे चन्द्रमा सहित मानो सूर्य लसत हैं अर्थ चन्द्रयुक्त सूर्य होते हैं तब सूर्यग्रहण होतई सो मानो ग्रहण समय में सूर्य शोभित हैं इत्यर्थ ौ कि मानो सूर्य मेघामें शोभितहैं । | यथा सिद्धातरहस्ये " छादयन्यमिन्दुरिति" सर्पसम शस्त्र हैं चदन गधसम गध है १० महादेव त्रिपुरके भस्म करिवेको बाण चलायो है ते बाण दैत्य जाया जे दैत्यस्त्री हैं तिनके भागतम तनमें लागे भस्म करयो है मानो तेई हैं पाणावलीसम ज्वालामाला है दैत्यजाया सम राक्षसी हैं ११ पाचि कहे पनामणि अथवा पाचि कहे पाकिकै फ? कहे फूटती है ते माणि बहुधा उचटती हैं कहे उछरती हैं गंगको सहस्त्रमुखी कहे सहस्रधारा है समुद्र को मिली गुणि के गिरा जो सरस्वती हैं सो मानो अतिसुखी हैकै अपार कहे अगएयमुखी (हैकै समुद्रको मिली है सुवर्ण द्रव सरस्वती के जल सम है १२ ॥ दोहा ।। हनुमतलाई लक सब बच्यो विभीषणधाम ॥ ज्यों अरुणोदय बेरमें पंकज पूरबयाम १३ सयुतायद ॥ हनु- मत लंकलगाइकै । पुनि पूछ सिंधु बुझाइकै ॥ शुभ देखि सीतहि पाँपरे। मणि पाय पानंदजीभरे १४ रघुनाथपै जबहीं गये। उठि अंकलावनको भये । प्रभु में कहा करणी करी। शिर पायकी धरणी धरी १५ दोहा ॥ चिन्तामणिसी मणि दई रघुपतिकर हनुमंत ॥ सीताजी को मनग्यो जनु अन- राग अनत १६ ॥ हनुमान कारकै लाई कहे जारी जो जरति सब लंका है तामे बच्यो जो विभीषण को धाम है सो ज्वालमध्य कैसों शोभित है जैसे पूर्वयाम कहे 'मथम पहर अरुण जे सूर्य है। तिनके पदयके घरमें कही समय में पंकज कमल शोभित हैं जैसे कमल रात्रि को मुकुलित रहत है मातही सूर्योदय
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