पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१५३

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रामचन्द्रिका सटीक । १५१ मृग केशव को भायेहौ । साधु हनुमत बलवत यशवत तुम गये एक काजको अनेक करि आयेही २५ हनुमान्-तोमर छद ॥ गये मुद्रिकाले पार । मणि मोहि ल्याईबार ॥ कह कसो मैं बल रक प्रतिमृतक जारीलक २६ ॥ सीताको सदेश देकै हमारो सब दुःख तुम हरिलीन्हों ताते हरि यह जो तुम्हारो नाम है सो सांचो है । हरति दु खमिति हरिः । अर्थ जो दुःख को हरै सो हरि कहा सो तुम नरहरि कहे नृसिंह हौ और नाम जो नर है ताको मरिहर कहे छोडिक हरि एतेनाम सों ठाये कहे युक्तहौ यासों या जनायो कि प्रहलाद के समान तुम हमारो दुख हरयो है अथवा और जे नाम हैं इन्द्रादिक तिनको परिहरि कहे छोडिक नरहरिकहे नृसिंह यह जो नाम है ताके सम ठाये हो अर्थ इंद्रादिकन की समता, करिवेलायक तुम नहीं हौ विक्रमादि करिके तुम सिंह के समानहौ मेरे बाणको जों रोष क्रोध है ताके सम हौ अर्थ जैसे हमारे बाण को क्रोध निष्फल नहीं होत वैसे तुम निष्फल नहीं होत जो कार्य करिवो चाहो सो करिही भावो अथवा मेरे बाण के समहौ भी मेरे रोष के समहौ कहूं धाण रस सम पाठ है तौ बाणका जो रस कहे बल है ताके समहौ अर्थ जैसे हमारे पाणमें बल है तैसे तुम्हारे बल है " शृङ्गारादौ विषे वीर्ये द्रवे रागे गुणो रसः इत्यमरः " हे बलीमुख, शूर ! अर्थ बलीमुख ने वानर हैं तिनमें शूर कहे वीर बली जे बलवान हैं तिनके मुखन करिके निज कहे निश्चय करिके गायेही अर्थ बड़े बड़े बलवान् तुम्हारो परखान करत हैं औ शाखा जे वृक्ष शाखा है तिनके मृग कहे गामी तुम नहींही बुद्धि बलनके जे शाखा हैं तिनके गामीही अर्थ अनेक बुद्धिबल करि कारज साधतही भौ कि वेदकी | जे कला आदि शाखा है तिनके मृग कहे गामाही अर्थ वेदाध्ययन मों | प्रवीण हो एक कार्य सीय खोज अनेक कार्य लका दाहादि २५ ॥ २६ ॥ अति हत्यो बालक अक्ष । लैगयो बांधि विपक्ष ।। जड़ वृक्ष तोरे दीन । मैं कहा विक्रम कीन २७ तिथि विजय दशमी पाइ । उठि चले श्रीरघुराइ ॥ हरियूथ यूथप संग। बिन पक्षकेतिपतंग २८॥