पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१५२

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रामचन्द्रिका सटीक । | भौरनी सम वन अशोक वाटिका की वीथिकानि में कहे गलीन में भ्रमत रहति है अथवा मन करिकै वनवीथिकानि में भ्रमत रहति है तुम्हारो वियोग वनहींमों भयो है तासों सीताको मन धन जन भ्रम्पो करत है इसिनी मुखभाव से सीता शीतलता के लिये केशरी सिंह औ कुकुम हरिणी वध भयसों सीता विरहोद्दीपन भयसो २२ ॥ सीताजूसंदेश-दोहा ।। श्रीनृसिंह प्रसादकी वेद जो गावत गाथ ॥ गये मांस दिन प्राशुही झूठी हैहै नाथ २३ श्रागम कनककुरंगके कही बात सुखपाइ | कोपानल जरि जाय जनि शोक समुद्र बुडाइ २४ ॥ द्रसिंहरूप है खमको फारि निकसि मह्लाद की रक्षा कमी यह जो गाथा घेद गावत है सो हमपति रावण कृत में अबधि मास के दिन है तिनके गफै कहे बीते पाचही कहे थोरेही दिनों झूठी है है अवधि दिन बीते रावण हमको मारिडारि है तब सब काहिहैं कि साक्षात् सी सीता की रक्षा रावणसों न फस्यो तो असंषधी महादकी रक्षा कहा करचो हैहै इति भावार्थ जे वनकृत अवधि दिन रहें प्रकाश में कहो है अवधि दई। वैमास की सो जानो अथवा मास दिन कहे एक महीना गये कहे बीते अर्थ एक महीना के बाद हम माण छोड़ि दे बाल्मीकीय में कयो है "इद भूयाश्च मे नार्थ शूर रामं पुन पुनः । जीवित धारयिष्यामि मास दशरथात्मजम् ।। अर्ध्व मासान जीयेय सस्पेनाह प्रवीमि से " २३ " राज सुता यकमा सुनौ । अब पाडतहौं भुवभार हनौ ।। सब पावक में निज देहहि राखहु । छाना शरीर मृगै अभिलाखहु " या प्रकार राक्षसन को मारि भुवभार हरियो कश्यो रहै सो पास कोपानल में जरन न पावै औ शोकरूपी समुद्र में खूबन न पावै ता पात की रक्षा तुमको नीके प्रकार सो करिये है २४ ॥ राम-दडक ॥ सांत्रो एक नाम हरि लीन्हे सब दुस हरि और नाम परिहरि नरहरि ठायेहो। वानर नहीं हो तुम मेरे बाणरोपसम वलीमुख शूर वली मुख निज गाये हो । शाखामृग नाही बुद्धिबलनके शासामृग धिों वेद शासा