पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१५५

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१५३ रामचन्द्रिका सटीक। चलत हरि दचकनि दचकत मच ऐसे मचात भूतलके थल थल । लचकि लचकि जात शेषके अशेष फण भागि गई भोगवती अतल वितलतल ३१ गीतिकावद ॥ रघुनाथजू हनुमंत ऊपर शोभिये तिहि कालजू । उदयाद्रिशोभन शृग मानहुँ शुभ्रसूर विशालजू ॥ शुभअग अगदसंग लक्ष्मण लक्षिये बहुभांतिजू । जनु मेरु मंदर सग अडत चन्द्र राजत रातिजू ३२ दोहा । बलसागर लक्ष्मण सहित कपिसागर रणधीर ॥ यरासागर रघुनाथजू मेले सागरतीर ३३ ॥ भोगवती कहे नागपुरी ३१ अंगदके ऊपर शुभ अंग जे लक्ष्मण हैं तिन्हें रामचन्द्र के संग बहुभांति सौ लक्षिये कहे देखियत है मेस कुठे सुमेरु के भंग में कै-मवर फहे मदराचल के शृंगमें रातिको चंद्र राजत है ३२ कपि- सागर कहे कपिनकी सागर सदृश सैन्य ३३ ॥ विजयाचंद ॥ भूति विभूति पियूषहुकी विष ईशशरीर कि पाय वियोहै। है किधौं केशव कश्यपको घर देव अदे- वन के मन मोहै।सत हियो कि बसै हरि संतत शोभनत कहै कवि कोहै । चंदननीरतरगतरगित नागर कोउ कि सागर सोहै ३४ गीतिकाछंद ।। जलजाल कालकरालमाल तिमिगिलादिकसों बसे । उर लोग क्षोभ विमोह कोह सकाम ज्यों खलको लसै । बहु संपदायुत जानिये अतिपातकी सम.लेखिये । कोउ मांगनो अरु पाहुनो नहिं नीरे पीवत देखिये ३५॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्रीरामचन्द्र- चन्द्रिकायामिन्द्रजिविरचितायांसमुद्रतटरामसैन्य- निवेशननामचतुर्दश प्रकाशः ॥ १४॥ ईश कहे महादेव केशरी पक्ष भूति कहे अधिक है विभूति कहे भस्मकी